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प्रधानसंपादकीय किंचित् प्रास्ताविक
विशाल राजस्थानान्तर्गत मेदपाट (मेवाड) देशकी महत्ता भारतविभुत है । इस मेवाडके मस्तकस्थानीय चित्रकूट (चित्तौड) का - जिसको कवियोंने पृथ्वीके मुकुटकी उपमा दी है-ऐतिहासिक गौरव, भारतके भूत कालमें अपना अनन्य स्थान रखता है। अतः आधुनिक भारतका प्रत्येक राष्ट्रभक्त इस पुण्यभूमि चित्तौडकी यात्रा करना अपना परम कर्तव्य समझता है । इसी चित्तौडके दुर्गरूप मुकुटमें कलगीके समान, वह जगत्प्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ विराजमान है, जिसके चित्र भारतके प्राचीन स्थापत्य विषयक प्रत्येक प्रन्थमें और इतिहास विषयक प्रत्येक पुस्तकमें दृष्टिगोचर होते रहते हैं । चित्तौडके यात्रीको, बहुत दूरसे, सबसे प्रथम दर्शन, इसी कीर्तनरूप कीर्तिस्तंभके होते हैं। चित्रकूट के सबसे बडे वीर और विद्वान् नृपति महाराणा कुंभकर्णने (जिनका अधिक लोकप्रिय नाम संक्षेपमें कुंभा प्रसिद्ध है ) यह कीर्तिस्तंभ बनवाया था। स्थापत्य कलाकी दृष्टि से महाराणा कुंभाकी यह कृति अपने ढंगकी अनुपम है। सारे भारतवर्षमें इस प्रकारका अन्य कोई कीर्तिस्तंभ विद्यमान नहीं है। ___महाराणा कुंभा, जैसे वीरशिरोमणि नृपति थे वैसे ही वे कला और विद्याके विषयमें भी अद्भुत प्रतिभासंपन्न और निर्माण कार्य-कुशल व्यक्ति थे। उनके अद्भुतकलाप्रेमके द्योतक, चित्तौडके कीर्तिस्तंभके अतिरिक्त, आरावली पर्वतमालाके सबसे सुन्दरतम शिखर पर सुशोभित कुंभलमेर. नामक दुर्ग और उसके अनेकानेक स्थान विद्यमान हैं। उन्हीके कलाप्रेमसे प्रोत्साहित हो कर, आबूप्रदेश निवासी धन्ना नामक पोरवाड जातिके जैन वणिक्ने आरावलीकी उपत्यकामें राणकपुरका वह अद्भुत जैन मन्दिर बनवाया जो अपनी विशालता एवं कलामयताकी दृष्टि से, न केवल भारतमें ही अपितु सारे एशिया खण्डमें, एक दर्शनीय स्थान बना हुआ है। महाराणा कुंभाके संरक्षणमें उस मन्दिरका निर्माण हुआ अतः उस स्थानका नाम ही राणकपुरके रूपमें सुप्रसिद्ध हुआ।
इन्हीं महाराणा कुम्भकर्णका बनाया हुआ साहित्यिक कीर्तिस्तंभस्वरूप 'संगीतराज' नामक संस्कृत भाषाका महान ग्रन्थ उपलब्ध होता है जिसका एक भाग, प्रस्तुत रूपमें, विद्वानोंके करकमलमें उपस्थित है। यह संगीतराज ग्रन्थ बहुत बड़ा है । सोलह हजार श्लोकों जितना इसका परिमाण है । १६-१६ अक्षरोंकी एक पंक्तिके हिसाबसे ३२००० पंक्तियोंमें यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ है । ग्रन्थके नामसे ही ज्ञात होता है कि भारतीय संगीत कलाके विषयमें इस ग्रन्थमें सर्वाङ्ग परिपूर्ण विवेचन किया गया है । हमारे देशकी प्राचीन परंपरानुसार संगीतके अन्तर्गत, उससे संबद्ध नृत्य और वाद्य कलाका भी समावेश हो जाता है । अतः इस ग्रन्थमें गीत, वाद्य और नृत्य इन तीनों विषयका बहुत ही विस्तृत और वैविध्यपूर्ण विवेचन किया गया है।