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________________ तथा मन्तिम पद्य श्रीमद्भवानन्द-निवेशवी गोविन्दशर्मा गुरुमक्तियुक्तः । उपासकानामुपकारहेतोः पूजा-प्रदीपं कृतवान् विमृश्य ॥ इस बात के प्रमाण हैं। प्रदीप टीका में भास्कर भट्ट तथा चण्डीदास भट्टाचार्य के नामोल्लेख मिलते हैं। इन की यह टीका काव्यप्रकाश-प्रदीप', 'काव्य-प्रदीप' और 'प्रदीप' नाम से भी विख्यात है । 'काव्य-प्रदीप' को विदूतसमाज में अत्यन्त सम्मान प्राप्त हमा है जिसके परिणाम-स्वरूप वैद्यनाथ तत्सत् की 'प्रभा' तथा 'उदाहरण-चन्द्रिका' और नागेश भट्ट की 'उद्योत' नामक प्रटीका लघु एवं बृहद् (जिसे 'लध्वी' और 'बृहती' कहते हैं) सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। श्रीगोविन्द ठक्कूर मुख्यतः ताकिक थे। 'मुख्यार्थबाधे तद्योगे' इत्यादि लक्षणा-सूत्र की व्याख्या में इनके द्वारा स्वीकृत तार्किक पद्धति का व्याख्यान इसका परिचायक है । 'प्रदीप' और 'उद्योत' का समन्वित अध्ययन करने से यह बात और भी पुष्ट हो जाती है। प्रदीप में कहीं-कहीं व्याकरण के लक्षणहीन उल्लेख भी प्रतीत होते हैं। .. नरसिंह ठक्कूर की वंशावली के आधार पर गोविन्द ठक्कुर से पांचवीं पीढ़ी में ये हुए हैं तथा प्रदीप में विश्वनाथ का और कमलाकर भट्ट द्वारा प्रदीप का उल्लेख करने के आधार पर इन दोनों के बीच उत्पन्न मानकर इनका समय पन्द्रहवीं शती का अन्तिम भाग माना गया है। केवल "प्रदीप" के साथ काव्य-प्रकाश का प्रथम प्रकाशन 'पण्डित' पत्रिका के ४ अंकों (१० से १३) में १८८८.१८९१ ई. तक हुआ था। वैद्यनाथ तत्सत् की 'प्रभा' के साथ १८६१ और १६१२ ई० में निर्णयसागर प्रेस. बम्बई से, नागोजी भट्ट के "उद्योत" के साथ (केवल १, २, ७, १० उल्लास) पूना के डी०टी० चांदोरकर के संपादन : कमशः १८६६, १८६८ तथा १६६५ ई० में पूना से, 'प्रदीप', 'उद्योत', 'प्रभा', रुचक के ‘संकेत" एवं नरहरि सरस्वती तीर्थ की "बालचित्तानुरजनी', के साथ (केवल १, २, ३, १० उल्लास) श्री एस०एस० सुखटणकर के सम्पादन में बम्बई से १६३३ और १९४१ ई० में, "प्रदीप" तथा "उद्योत" के साथ सम्पूर्ण ग्रन्थ का प्रकाशन पं. वासुदेव शास्त्री प्रभ्यंकरजी के सम्पादन में 'पानन्दाश्रम, पूना' से ई. स. १६११ में हुआ है। इससे यह सहज अनुभव होता है कि 'काव्य-प्रदीप' छाया के प्रति विद्वानों का पूर्ण अनुराग रहा है। -[ २५ ] उदाहरण-दीपिका- म०म० गोविन्द ठक्कुर ( १५वीं शती ई० का अन्तिम भाग) . गोविन्द ठक्कुर की यह द्वितीय टोका है। यह मूल ग्रन्थपाठ के अन्तर्गत उदाहरणार्थ दिए गए पद्यों की विशद व्याख्या है। डॉ० सुशीलकुमार डे का अनुमान है कि स्टीन ने (पृ. २८,६०, २६६ पर) जिस श्लोकदीपिका' का उल्लेख किया है, वह यह उदाहरणदोपिका' ही है क्योंकि इस ग्रन्थ के दूसरे पद्य में 'काव्यप्रदीप' का निर्देश किया गया है। वैद्यनाथ तत्सत् ने अपनी टीका में दीपिकाकार' शब्द से जो उल्लेख किया है, वह जयन्त भट्ट की 'दीपिका' के बारे में न होकर गोविन्द ठक्कुर की इस 'उदाहरणदीपिका' का ही है। क्योंकि ‘उदाहरणचन्द्रिका' में दीपिकाकार के नाम से जिस मत का उपपादन किया है वह जयन्त भट्ट की दीपिका' में उपलब्ध नहीं होता है। 'उदाहरण-दीपिका' और 'उदाहरण-चन्द्रिका' ये दोनों टीकाएँ काव्यप्रकाश के उदाहरणों की व्याख्या के लिये ही लिखी गई हैं। प्रतः 'उदाहरण. १. सप्तम उल्लास में "न्यूनपदत्व' और 'च्युतसंस्कृति' के उदाहरण में यह बात द्रष्टव्य है। २. द्रष्टव्य-संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास (हिन्दी अनुवाद) भाग १, पृ० १५० ।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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