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________________ ७० आर्यावर्त अथवा उत्तर भारत के मेरूत्तर प्रदेश के अन्तर्गत 'माठरपूजा' ग्राम था । भट्ट गोपाल के पिता का नाम कृष्ण (?) तथा पितामह का नाम लक्ष्मण भट्ट था । लक्ष्मण भट्ट वेद के परम विद्वान् थे और उन्होंने वेदभूषण' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। काशी में रहते हुए लक्ष्मण भट्ट ने भगवान् विश्वनाथ की उपासना के फलस्वरूप पौत्र या पुत्र (?) प्राप्त किया जिसका नाम 'गोपाल' रखा गया। ये आगे चलकर अष्टादश विद्यानों में पारङ्गत हए और इन्हींने काव्यप्रकाश की प्रस्तुत टीका लिखी है। इस टीका का प्रकाशन आर० हरिहर शास्त्री तथा के० साम्ब सदाशिव शास्त्री द्वारा (दो खण्डों में संस्कृत सीरिज से १६२६ तथा १६३० ई० में हुआ है। [ 8 ] तत्व-परीक्षा (?)- सुबुद्धि मिश्र ( तेरहवीं शती ई० का उत्तरार्ध) . काव्यप्रकाश की 'नरसिंहमनीषा, सारसमुच्चय, विस्तारिका एवं न्यायाचार्य यशोविजयजी उपाध्याय को टीका तथा सुधासागरी में सुबुद्धिमिश्र का काव्य-प्रकाश के टीकाकार के रूप में स्मरण और समालोचन हुआ है। पीटर्सन ने अपनी दूसरी रिपोर्ट (पृ० १७) में इसकी चर्चा की है। इसी आधार पर इनका समय तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जाता है। इनका मिथिला के पजीप्रबन्ध में नाम न होने से ये मैथिल नहीं थे ऐसा भी अनुमान किया जाता है। नरसिंहमनीषा में इति सुबुद्धेः कौबुद्धयमपास्तम्' कहकर तुच्छता व्यक्त की गई है जब कि उपाध्यायजी की टीका में प्रायः पाठ बार 'सुबुद्धिमिधास्तु' कह कर इनके मतों का उल्लेख तथा आवश्यक आलोचना आदि की गई है। आफेक्ट ABOD २०८अ, IOC iii, ११३०/५६६ पृ० ३२६' ने सुबुद्धिमिश्र को 'सुबुद्धिमिश्र-महेश्वर' कहा है । उनके इस प्रकार के वर्णन से तथा हॉल (वासवदत्ता की भूमिका पृ. ५४) के कथन से ज्ञात होता है कि यह शब्द 'महेश्वर' न होकर 'माहेश्वर' है और अभिनव गुप्त तथा विद्याधर की तरह शेव-लेखक को परिलक्षित करता है। अतः सुबुद्धि मिश्र का 'महेश्वर' अथवा 'माहेश्वर' गोत्रनाम रहा होगा। आफेक्ट ने ही सुबुद्धि मित्र को वामन के 'काव्यालङ्कारसूत्र' पर 'साहित्य-सर्वस्व' नामक टीका का रचयिता माना है। पीटर्सन ने (ii, पृ० १७ में ) इनके तत्वपरीक्षा' अथवा 'शब्दार्थतत्त्व-परीक्षा' ग्रन्थ या टीका का भी उल्लेख किया है। [१०] काव्य-प्रकाश-दर्पण- विश्वनाथ कविराज ( १३२५ से १३७५ ई० ) उत्कल निवासी विश्वनाथ महाकवि चन्द्रशेखर के पुत्र थे। काव्यप्रकाश की प्रस्तुत टीका में विश्वनाथ ने त्रिंशता क्रतुभिविष्णु तोषयामास वेदवित् । वेदानां भाष्यमकरोन्नाम्ना यो वेदमूषणम् । तस्य श्रीकृष्णनामासीत् पुत्रः कृष्ण इवापरः । वेदानधीत्य निखिलान शास्त्राण्यप्यखिलानि च ॥ स पुत्रार्थी महादेवं वाराणस्यामतोषयत् । तस्यासीद् 'भट्टगोपाल' नामा सूनुः सुलोचनः ।। अष्टाशदसु विद्यासु बहुशः स कृतश्रमः । उपास्य शारदादेवी पुत्रो लेभे गुणोत्तरम् ॥ (भावप्रकाशन, शारदातनय) १. डॉ. एस. के. डे ने, 'संस्कृत काव्यशास्त्र के इतिहास, भाग १ पृ० १४८ में तथा प्रो० बाबूलाल शुक्ल ने 'हिन्दी नाट्यशास्त्र' भाग १ की भूमिका पृ० ३६-३७ में इस विषय की चर्चा की है जिनमें परस्पर कुछ भेद है २. डॉ. पी. वी. कारणे ने टीका का नाम 'तत्त्वपरीक्षा' ही माना है। 'द्रष्टव्य संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास' (अनु० डॉ. इन्द्रचन्द्र शास्त्री) ० ५१६ । ३. श्रीचन्द्रशेखरमहाकविचन्द्रसूनु-श्रीविश्वनाथकविराजकृतं प्रवन्धम् । यह साहित्यदर्पण में कहा गया है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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