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________________ ५१ इसी नाम की एक अन्य कृति पाश्चन्द्रसूरि ने सन् १५२१ में बनाई है। एक अन्य अज्ञातकर्ता के के नाम से भी इस नाम की कृति का उल्लेख मिलता है । २१. कोक्ति-शिका जैन ग्रन्थावली (१० ३१२) के अनुसार यह 'रत्नाकर' की कृति है। सम्भवतः इसमें वक्रोक्ति-सम्बन्धी ५० पद्यों का संग्रह होगा ! ये ग्रन्थ इस बात के साक्षी हैं कि अलङ्कारशास्त्र को विवेचना में जैन मनीषियों ने पर्याप्त योग दिया है तथा अनेक विषयों पर अपनी नवीन उद्भावनाओं को प्रस्तुत करने में भी वे पीछे नहीं रहे हैं। [ ३. नाट्यशास्त्र के ग्रन्थ और ग्रन्थकार ] १. नाट्यदर्पण - यह रामचन्द्र और गुणचन्द्र नामक दो विद्वानों की कृति है। वे दोनों आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य थे अतः इनका समय सन् १०६८ से ११७३ माना जाता है । ये अपने गुरु के समान ही बहुश्रुत थे। कविकटार मल्ल, स्वातन्त्र्यत्रिय शतावधानी यादि अनेक उपाधियों से विभूषित रामचन्द्रसूरि धौर उनके सहयोगी गुरुभाई चन्द्र ने लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की थी। नाट्यशास्त्र के क्षेत्र में इनका 'नाट्यदण' अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नाट्यदर्पण चार विवेकों में विभक्त है। इसकी मूल कारिकाएँ क्रमशः चारों विवेकों में ६५, ३७, ५१ और ५४ कुल मिला कर २०७ है 'नाटक-निर्णय' नामक प्रथम विवेक में नाटकसम्बन्धी सभी बातों का निरूपण है। रूपक के बारह भेदों को जिन्हें वाणीरूप आचारादि बारह प्रङ्गरूप भी कहा है। द्वितीय विवेक का नाम प्रकरणाद्येकादश-निर्णय' है और इसमें प्रकरण से लेकर बीबी तक ११ रूपकों का विवेचन दिया है। तृतीय विवेक का नाम 'वृति रस-मावाभिनय- विचार' रखा गया है। इसके अनुसार इसमें भारती यादि चार वृति शृङ्गार से शाम तक नौ रस, नौ स्थायीभाव तंतीस व्यभिचारी भाव रसादि पाठ प्रनुभाव और चार अभिनयों पर प्रकाश डाला है। चौचा विवेक 'सर्वसाधारण-लक्ष-निर्णय' नामक है जिसमें सभी रूपकों पर घटाने योग्य लक्षण दिए गए हैं। . १. स्वोपज्ञवृत्ति - दोनों प्राचार्यों ने अपने ग्रन्थ पर प्रायः ४५०० अनुष्टुप् प्रमाण की यह वृत्ति लिखी है । इस विषय की पुष्टि के लिए जैन तथा जनेतर ग्रन्थों के उदाहरण दिए गए हैं तथा भरत के 'नाट्यशास्त्र', धनञ्जय के 'दशरूपक' तथा हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' के कई उद्धरण भी हैं और कुछ स्वरचित नाटकों का भी नामनिर्देश किया है। कुछ ग्रन्थों में 'नाट्यदर्पण' का उल्लेख भी मिलता है किन्तु सम्भवतः वह ग्रन्थ कोई अन्य ग्रन्य रहा होगा क्योंकि वे अंश इस ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं हैं। जैन विद्वानों में नाट्यशास्त्र पर लिखित यही ग्रन्थ आज उपलब्ध होता है। रायप्पसेराइज्ज नामक उपाङ्ग (०२३) की वृत्ति में मलयगिरि सूरि ने नाट्यविधिप्राभूत' (नायविहिपाहुड) नामक ग्रन्थ का उल्लेख किया है। इस प्राभूत में नाट्यशास्त्र का निरूपण होगा ! किन्तु यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। [ ४- छन्दः शास्त्र के ग्रन्थ और ग्रन्थकार ] १. छन्दः शास्त्र जैन सम्प्रदाय के प्राचायों द्वारा प्रणीत छन्द शास्त्रीय ग्रन्थों में सर्वप्राचीन इस नाम का यह ग्रन्थ प्राप्त होता है। विक्रम की छठी पाती में उत्पन्न, जैनेन्द्रव्याकरण आदि ग्रन्थों के रचयिता आचार्य पूज्यपाद की यह कृति है । जयकीर्ति ने अपने 'छन्दोऽनुशासन' में जिन पूज्यपाद की कृति का उपयोग किया था, वह यही ग्रन्थ है किन्तु यह ग्रन्थ अब तक प्राप्त है । २. जयदेवच्छन्दस्-तमि साधु, स्वयम्भू, कविदर्पणकार तथा जयकीर्ति आदि सभी जैन ग्रन्थकारों ने जयदेव को बहुत महत्त्व दिया है, इस आधार पर तथा वैदिक छन्दों का निरूपण करने पर भी जनेतर सम्प्रदाय में
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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