SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३५ श्री मनन्त जोशी ने इस ग्रन्थ का विधिवत् प्रकाशन किया था और चारों सम्प्रदाय के प्रमुख जन कार्यकर्तामों ने एकसाथ मिलकर यह ग्रन्थ आपके गुरुवर्य परमपूज्य आचार्य श्रोविजय धर्मसूरीश्वरजी महाराज को अर्पित किया था। दूसरे दिन ग्रन्थ की प्रतिभव्य शोभायात्रा निकली जिसमें हजारों स्त्रीपुरुषों ने भाग लिया और उत्साह का अपूर्व वातावरण उपस्थित हुआ था। ग्रन्थ के उद्घाटन प्रसंग पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा अन्य मन्त्रिगण तथा भिन्न-भिन्न प्रान्तों के राज्यपाल एवं विद्वान् प्रादि के अनेक सन्देश प्राप्त हुए थे। यह ग्रन्थ महामहिम राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरि, प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, श्री जगजीवन राम, धो कर्णसिंह मादि को प्रतिनिधि-मण्डल द्वारा समर्पित होने पर उनके द्वारा भी मुक्तकण्ठ से प्रशंसित हुआ। भगवान् महावीर के जीवन को साक्षात् प्रस्तुत करनेवाले ऐसे सुन्दर चित्रों का यह संग्रह सर्वप्रथम प्रकाशित होने के कारण.जन-जनेतर संस्थानों ने इसका हार्दिक सत्कार किया तथा भगवान् महावीर के निर्वाणकल्याणक महोत्सव के प्रसंग पर अनेक स्थानों में इन चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित हुई। इसी प्रकार इस ग्रन्थ-सम्पुट के आधार पर कुछ स्थानों पर मन्दिरों की दीवारों पर चित्र भी अङ्कित होने लगे हैं। और भी अनेक रीतियों से इन चित्रों का व्यापक प्रयोग हुमा है। ६१.०० रु. के मूल्य के इस ग्रन्थ की केवल दो माह में ही ४००० प्रतियों का विक्रय भारतीय साहित्य प्रकाशन के इतिहास में एक कीर्तिमान ही है। अब इस चित्रसम्पुट की द्वितीय प्रावृत्ति छप रही है। भगवान महावीर के अतिरिक्त २३ तीर्थंकरों के भविष्य में प्रकट होनेवाले सम्पुट के लिए नवीन चित्र पर्याप्त द्रव्य द्वारा तैयार करवाये जा रहे हैं । जैन साधु की दिनचर्या के रंगीन चित्र भी तैयार हो रहे हैं। यशोभारती की ओर से स्व०पू० उपाध्याय श्री यशोविजयजी विरचित जैनन्याय मादि से सम्बद्ध अनेक ग्रन्थों का मुदण अपने सम्पादन के साथ आप करवा रहे हैं । इस प्रकार साहित्य और कला से सम्बन्धित कतिपय कार्यों में पाप निरन्तर कार्यरत रहते हैं। आपकी साहित्य तथा कला के क्षेत्र में की गई सेवा को लक्ष्य में रखकर जैन-समाज ने आपको 'साहित्यकला रत्न' जैसी सम्मानित पदवी से विभूषित किया है। भगवान् श्रीमहावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के निमित्त राष्ट्रीय समिति की जो रचना की गई थी, उसमें आपकी विशिष्ट योग्यता को ध्यान में रखकर आपको 'अतिथि-विशेष' के रूप में लिया गया और समिति ने मापकी साहित्य-प्रतिभा, कल्पना-दृष्टि, शास्त्रीय ज्ञान, गम्भीर सूझ-बूझ एवं समन्वय भावना का यथासमय लाभ प्राप्त किया। इस समिति के अनेक सदस्य पूज्य मुनि श्री से सम्पर्क साधते रहे और मापसे सूचना और सलाह लेते रहे कुछ प्रान्तीय समितियों के प्रधान कार्यकर्ता तो स्वयं बम्बई आकर उत्सवों के लिये पूज्य मुनिश्री से मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे। आपकी सम्मति से निर्मित 'जनध्वज' तथा 'जनप्रतीक' का जैन समाज में सबसे अधिक समादर हुआ है। इस समिति के कार्य के सम्बन्ध में कुछ स्थानों से विसंवादी स्वर उठे थे और विरोध की प्रवृत्ति भी हुई थी, परन्तु मुनि जी ने निर्भयता और साहसपूर्वक अपना कर्तव्य पूर्ण किया था। परिणामतः समाज के सूत्रधार कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार आदि बहुत प्रभावित हुए और आपका यश चारों भोर चरम सीमा पर पहुँच गया।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy