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________________ द्रष्टव्य BORI, 671 ऑफ 1886-92. BORi. D. xii. 117 पिटर्स. IY. P. 25 (No. 671) [ २१ ] टिप्पण कै० कै० में सूचन है। इसका प्रारम्भ-कवेर्यथा कृतौ प्रायस्तथैव व्याकृताविह । व्याकर्तुरपि दोषाः स्यु इत्यादि बताया है । M. T. 5171 (a) गवर्नमेंट ओरियण्टल मैन्युस्क्रिण्ट लायब्रेरी, मद्रास की सूची में द्रष्टव्य । [२२] टिप्पणो अथवा काव्यप्रकाशसन्दर्भवादकै. कै. में इसका प्रारम्भ प्रसीदतु तथा देवं यथा व्याकृतिषु स्फुटम् । साधुत्वतारतम्यस्य भवेद बोद्धा बुधो जनः । दिखलाया है। MT. ३६७२ (imc) ३६८६ (imc) [ २३ ] टिप्पणी ___ के० के० में an. BORI. ३७२ आफ १८६५-६८ (मूल सहित) BORI. D. XII ११६. (d. 1614 A. B.) इसका सूचन है। · [२४] टोका कै० के० में इसका प्रारम्भ- साहित्यं शिक्योरूपमच्याहतमनुत्तमम्' 10, ७९-१०) से बतलाया है। [२५] टीका- कल्याण उपाध्याय डॉ. गंगानाथ झा ने काव्यप्रकाश के अपने अंग्रेजी अनुवाद में पृ.६ पर इस टीका का निर्देश किया है। टीका का नाम अज्ञात है। [ २६ ] टोका-कृष्णमित्राचार्य नैयायिक ये रामनाथ के पुत्र भौर देवीदत्त के पौत्र थे। इनकी रचनाओं के लिए प्रोफेक्ट सूची भाग १, १२१ बी. तथा प्रस्तुत टीका के सम्बन्ध में पृ० १२० बी० पर उल्लेख है। [ २७ ] टोका- तरुणवाचस्पति . कै० के० में त्रिपुरिणत्तुर की सूची के प्रथम भाग में पृ० ३२० B से इसका सूचन करते हुए यह सन्देह किया है कि क्या यह इनकी टीका है ? ये दण्डी के काव्यादर्श के टीकाकार ही हों तो इनका समय १३वीं शती का पूवार्ध है। [२८] टीका-भानुचन्द्र मौफैक्ट i. १०१ बी. में इसका निर्देश है। इन्होंने दण्डी के 'दशकुमार-चरित' पर भी टीका लिखी है। कहीं इसे वृत्ति भी कहा है। इसकी पाण्डुलिपि का कुछ अंश 'दहेलानो उपाश्रय, अहमदाबाद, में था। जो कि अब श्री लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर में भेट हो गया है। । २९ रोका- मिश्र मरिणकण्ठ द्विवेदी मुनि . कै०० में इसका सूचन है। बीकानेर में इसकी पाण्डुलिपि सं. ३६०० पर प्रथम तथा द्वितीय उल्लासात्मक है।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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