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________________ (७४) योगचिन्तामणिः। [चूर्णाधिकार ङ्गादिरयं निगद्यते । सायं प्रगे खादति कर्षसमितं भवन्ति देहे बलवीर्यपुष्टयः ॥ ४॥ निहतं दीपयत्यग्निं तनुवर्णकरं परम् । वातघ्नं नेत्रहृदयकण्ठजिहाविशोधनम् ॥५॥ प्रमेहकासारुचियक्ष्मपीनसक्षयास्रदाहग्रहांत्रिदोपनुत् । हिक्कातिसारप्रदरं गलग्रहं निहन्ति पाण्डं स्वरभंगमश्मरीम् ॥६॥ लौंग, इलायची, तज, पत्रज, कमलगट्टाकी मिंगी, खस, छड, तगर, नेत्रवाला, कंकोल, काली अगर, नागकेशर, जायफल, सफेद चन्दन, जावित्री, दोनों जीरे, सोंठ, मिरच, पीपल, पोहकरमूल, कपूर, हरड, बहेडा, आंवला, कूठ, बायविडंग, चित्रक, तालीसपत्र, देवदारु, धनियां, अजमायन, मुलहठी खैरसार, अम्लवेत, वंशलोचन, अजमोद, भीमसेनीकपूर, अभ्रक, काकडासिंगी, अडूसा, पीपलामूल, अरनी, फूलप्रियंगु, मोथा, अतीस, शतावरी, गिलोयका सत्त्व, निसोथ, जवासा इन सब औषधियों को बराबर लेकर सबकी बरावर मिश्री मिलावे। यह 'बृहल्लवङ्गादि चूर्ण ' है इसको सायंकाल और प्रातःक लके समय चार टंकके अनुमान नित्य खाय तो देहमें बल और वीर्यकी पुष्टता होवे । प्रमेह, खांसी, अरुचि, राजयक्ष्मा, पीनस, क्षय. रुधिरमन्यदाह, संग्रहणी, त्रिदोष, हिचकी, अतीसार, प्रदर, गलग्रह, पांडू रोग, स्वरभंग और पथरी दूर होवे, अग्निको दीपन करे, देहका वर्ण उत्तम करे । वातके रोग, नेत्रके रोग, हृदय और कंठके रोग नष्ट होवें, जिताको शुद करे ॥ १-६॥ Aho! Shrutgyanam ":
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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