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________________ प्रथमः ] भाषाटीकासहितः । ( ६१ ) योंको डाले - सोंठ, मिरच, पीपल, खरेंटी, मुसली, चातुर्जात, अजवायन, सिंघाडा, बेलगिरी, हलदी, खैरका गोंद, शतावर, जाय-फल, माजूफल, कबाबचीनी, अकरकरा, मालवनी, बावची, अस गंध, जावित्री, फिटकरी, प्रियंगु, चिरौंजी, गोंदीके फल, शहद, व्रत इन सब औषधियोंको मिलावे तो यह वासावलेह बनकर तैयार हो । यह खांसी श्वासको हरे, बल करे, कामानि बढावे, संपूर्ण रोगोंको यह वासावलेह दूर करता है ॥ १-४ ॥ | तुलामादाय वासायाः पचेदष्टगुणे जले । तेन पादावशेषेण पाचयेदार्द्रकं भिषक् ॥ १ ॥ हरीतकीनां चूर्णस्य सिता शुद्धा तथाशतम् । शीतीभूते क्षिपेत्तत्र क्षौद्रस्याष्टौ पलानि च ॥ २ ॥ वंशीत्वगायाश्चत्वारि पिप्पल्यष्टपलं तथा । चातुर्जातपलं चैव लेहोऽयं संप्रणाशयेत् । रक्त। पित्तं क्षयं चैवश्वासमनेश्व मन्दताम् || ३ || २ - अड्डूमा एक तुला लेवे, उसको अठगुने पानीमें औटावे जब चतुर्थीश जल शेष रहे तब उसमें ११४ टंक हरड औटावे । पीछे १०० पल मिश्री मिलाकर अवलेह बनावे जव शीतल होजाय तब ८ पल शहद डाले और ८ पल वंशलोचन, ८ पल पीपल, १ पल चातुर्जात डाले यह अवलेह रक्तपित्त, क्षय, वास और मन्दानिका नाश करे ॥ १-३ ॥ वासकस्य रसप्रस्थं प्रस्थार्द्ध मधुशर्करे । पिप्पल्या द्विपलं साज्यं सम्यग्लेहं विपाचयेत् ॥ १ ॥ श्रेष्ठो बलावलेहोऽयं राजयक्ष्म निषूदनः । कासश्वासहरः प्रोक्त उरःक्षतहरस्तथा ॥ २ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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