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________________ ( ५६ ) दोला यन्त्र | योगचिन्तामणिः । [ पाकाधिकारः पाकमें सब औषधियों से छः गुनी मिश्री मिलाकर सबका मर्दन कर चार २ मासेकी गोलियां बनावे | रात्रिके समय इस गोलीको मुखमें राखे तौ सौ सौ स्त्रियोंसे सम्भोग करनेकी सामर्थ्य होय. दृढदेह हाथीकासा वल, महाकामी हो और सम्पूर्ण क्षीणता आदि रोग नष्ट होवें ॥ १--३ ॥ अगस्त्यहरीतकी । द्विपञ्चमूलेभकणात्मगुप्ता भाङ्ग सटी पुष्करमूल विश्वा | पाठाऽमृताग्रंथि कशंखपुष्पीरास्त्राग्न्यपामार्गबलायवासान् ॥ १ ॥ द्विपालकान्जस्य यवाढकं च हरीतकीनां च शतं गुरूणाम् । द्रोणे जलस्याढकसंयुते वा क्वाथे कृते पूतचतुर्थभागे ॥ २ ॥ पचेत्तुल शुद्धगुडस्य दत्त्वा पृथक्सतैलं कुडवं घृतं च । चूर्ण तु तावन्मगधोद्भवाया देयं च तस्मिन्मधुशी सिद्धम् ॥ ३ ॥ रसायनं कल्कमथो विलिय़ाद्वे च मयी नित्यमथाशु हन्यात् । तद्राजयक्ष्मग्रहणीप्रदोषं शोकानिमांद्यं स्वरभेदकं च ॥४॥ पाण्ड्वामय श्वासशिराविकारान हृद्रोग हिक्काविषमज्वरांश्व | मेघाबलोत्साहगतिप्रदो वै हरीतकीपाकपतिर्वरिष्ठः ॥ ५ ॥ दशमूल, गजपीपल, केंचके बीज, भारंगी, कचूर, पुह करमूल, सोंठ, पाढ, गिलोय, पीपलामल, शंखपुष्पी (शंखाहूली), रासना, Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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