________________
प्रथमः ]
भाषाटीका सहितः
( ५१ )
कामी वन्ध्या भवति पुत्रिणी ॥ ९ ॥ अवीर्यो वीर्यमाप्नोति भवेत्स्त्रीणां प्रियो नरः । एष कूष्माण्डको लेहः सर्वरोगनिवारणः ॥ १० ॥
रक्तपित्त, ज्वर, खांसी, कामला, तमकश्वास, भ्रम, छर्दि, प्यास, श्वास, पांडुरोग, क्षतक्षय, मृगी, शिरका दर्द, योनिशूल, योनि ते रुधिरका गिरना, ज्वरसे प्रगट मन्दाग्नि इनको नाश करे, वृद्ध पुरुष तरुण खौर कामी होय, वन्ध्या पुत्रवती होय, बीर्यहीन वीर्यवाला होय, इसको खानेवाला पुरुष स्त्रियोंको भिय होय । यह कुष्मांडावलेह सर्वरोगनाशक है ॥ ७-१० ॥
कूष्माण्डकान्पलशतं सुच्छिन्नं निष्कुलीकृतम् । पचेत्ततो घृते प्रस्थे पात्रे ताम्रमये दृढे । यदा मधुनिभः पाकस्तदा खण्डं च निक्षिपेत् ॥ १ ॥
३- पके पेठेका गूदा शुद्ध कर १०० पल लेकर २६६ टंक घृतमें डालकर तांबे के पात्र में भूने, जब शददकासा वर्ण हो जाय, तब उसमें मिश्री की चासनी मिलाकर पाक बनावे और पूर्वोक्त औषधि भी डाले ॥ १ ॥
निष्कुली कृत कूष्माण्डखण्डान्पलशतं पचेत् | निक्षिप्य द्वितुलानीरमर्द्धशिष्टं च गृह्यते ॥ १ ॥ तानि कूष्माण्डखण्डानि पीडयेदृढवाससा । आतपे शोषयेत्किंचिच्छूलाग्र बहुशो विधेत् ॥ २ ॥ क्षिप्त्वा ताम्रकटाहे च दद्यादष्टपलं घृतम् । तेन
Aho ! Shrutgyanam