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________________ (२६) योगचिन्तामणिः [ पाकाधिकारः पीछे इनका कपड़छान करके न्यारी न्यारी रक्खे और दाख, गिरीका गोला, बदाम इत्यादिक वस्तुओंको पीसे नहीं किन्तु बहुत छोटे २ टुकडे करडाले खसखस, चिरौंजी इत्यादिको ज्यों की त्यों रहनेदे न पीसे न कतरे, ये चीजें पाक के अंदाजसे डालनी चाहिये तो खाने में पाक श्रेष्ठ बने ॥ २ ॥ ४॥ पाके जाते क्षिपेत्तत्र काष्टौषधिभवं रजः ॥ ५ ॥ दर्या विघट्टयेत्सम्यक् क्वचिदुष्णे सुगन्धि च । मुहुर्विघट्टयन्पश्चाद्राक्षादीन् प्रक्षिपेन्मुहुः || ६ || काश्मीरं घृतसंपिष्टं किचिद् घृष्टं विमिश्रयेत् । अहिफेनं क्षिपेत्क्षीरे संपिष्टं पाककर्मणि ॥ ७ ॥ देया शक्राशना भृष्टा चूर्णिता मात्रयाऽथवा । पुनः संघट्टयेत्सर्वमेकीभावं यथा व्रजेत् ॥ ८ ॥ ज्वालानि वर्जयेद्वैद्यः प्रक्षेपसमये ध्रुवम् । अन्यथा ही वीर्याणि भेषजानि प्रतापतः ॥ ९ ॥ जब पाक की चासनी तैयार होजाय उस समय पूर्वोक्त पीसी हुई काष्ठौषधि डालकर करछी से चलाता जाय, जब सब काष्ठादिक औषधि मिलजायँ और चासनी कम गर्म रहे तब सब सुगंधादि वस्तुओंको डाले फिर चलावे, तदनन्तर दाख गिरी आदि मेवा डाले पीछे केशरको घृतमें पीस उसमें मिलांदेवे । कदाचित् पाकमें अफीम डालनी होवे तो दूध में पीसकर डाले और भाग डालना होवे तो भूनकर और उसका चूर्ण कर डाले, पीछे इनको करछी से चलावे जिससे सच मिलजावें और यह बात भी बैद्यको याद रहे कि, जिस समय औषधि डाले उस समय अग्निको न देय क्योंकि औषधि डालने के समय अग्नि देनेसे औषधि दीनवीर्य होजाती हैं ॥ ५ ॥ ९ ॥ . Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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