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( ३३८ )
योगचिन्तामणिः ।
[ प्रकरणम्
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पिता गुरुकी स्पर्धा करे वह प्रदररोगवाली होवे, कृच्छू चांद्रायण व्रत करें। जो स्त्री पतिके मरने पर ब्रह्मचर्यको बिगाडे उसके योनिरोग होवे । जो पूर्व जन्म में दूधका चोरी करे उसके स्तनोंमें दूध नहीं होय, ब्राह्मणोंको दूध अन्नका दान देवे। जो अपने पतिको छोड परपुरुषकी इच्छा करे, उसके स्तनोंपर फोड होवें और भगसे रुधिर निकले वह अनि मंत्रसे होम करे और जप करे ॥
ज्योतिषद्वारा वंध्याका फल |
सुतपतिरस्तगतो वा पापयुतः पापर्व क्षितो व पि । सन्ततिबाधां कुरुते केन्द्रे पापान्विते चन्द्रे ॥ १ ॥
जिसके जन्मपत्र में पंचमेश सूर्य के अस्त साथ होवे अथवा पापग्रहके साथ बैठा होवे अथवा पापदीक्षित होय उसके संतान की बाधा होवे और पापयुक्त चंद्रमा केन्द्र में बैठा होवे तो भी संतान की बाधा होय । पंचमस्थान में दो। पापी वा तीन अस्त होकर बैठे हो तो स्त्री और पुरुष दोनों वंध्या होवें, परन्तु पूर्वोक्त ग्रह शत्रुवीक्षित होवें । इनकी शांतिक अर्थ बुध और शनिको पूजन करे ॥ १ ॥
स्वर्णधेनुदानविधि |
सम्पूज्य देवान्स्वगुरुं च नत्वा वस्त्रादिभोज्यैः परितोषयित्वा । आराधयित्वा विधिनाम्बिकां च ततः पिबेच्छुद्धफलं घृतं च ॥ १ ॥
जो वंध्या होय वह देवता और गुरुको नमस्कार कर भीजन वस्त्रादिसे उनको प्रसन्न करे और विधिपूर्वक पार्वतीकी आगधना करे, १६ मासे सोने की गो बनाकर दान करे, पीछे फलघृत जो घृताधिकार में लिख आये हैं उसको पीवे । वंध्यादोष दूर करनेको
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