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________________ (१४) योगचिन्तामणिः। पाकाधिकारः तीक्ष्ण अग्निवालेका मल सूखा होता है, मन्दाग्निवालेका मल पतला होता है, और दुर्गधि चंद्रिकायुक्त मल असाध्य रोगीका होता है ॥ ७॥ __ शद्वपरीक्षा। गुरुः स्वरो भवेच्छेप्मी स्फुटवक्ता च पित्तलः। उभाभ्यां रहितो वातः स्वरतश्चैव लक्षयेत् ॥१॥ कमवाले रोगीका स्वर भारी होय, पित्तवाला स्पष्ट बोले और बादीसे दोनों लक्षगरहित बोले अर्थात् घरघर शब्द बोले ॥ १ ॥ स्पर्शपरीक्षा। पित्तरोगी भवेदुष्णो वातरोगी च शीतलः । पिच्छिलः श्लष्मरोगी स्यात्रिलिंगात्सन्निपातवान् ॥ आईकः स भवेच्छ्लेष्मा स्पर्शतश्चैव लक्षयेत् ॥१॥ पित्तके रोगीका उष्णस्पर्श, वातरोगीका शीतल, कफरोगीका चिकना, अथवा पानीसे भीगासा और सन्निपातसे सर्वलक्षण युक्त होता है ॥ १॥ आयुर्विचार । भिषगादौ परीक्षेत रुग्णस्यायुः प्रयत्नतः । यत आयुषि विस्तीर्णे चिकित्सा सफला भवेत् ॥१॥ वैद्यको उचित है कि, प्रथम रोगीकी आयुका विचार करे। क्योंकि पूर्णायु होनेसे चिकित्सा सफल होती है ॥ १ ॥ आयुर्लक्षण। सौम्या दृष्टिर्भवेद्यम्य श्रोत्रवकं तथैव च । स्वादुगन्धं विजानाति स साध्यो नात्र संशयः ॥१॥ पाणी पादौ च यस्योष्णौ दाहः स्वल्पतरौ भवेत् । Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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