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________________ . सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (३२७) शिरसका फूल, कंजाके बीज, केशर, मनशिल और कूठ इनको जलमें घोलकर लगानसे सांप और बिच्छूका विष दूर होवे । शिरस, काली मिरच, नींब, ककडी, चौलाई, मेदा, पाढ और सोंठ ये एक एक विषके दोष हरण करते हैं ॥ १ ॥२॥ चिह्वायास्तालुनो योगादमृतस्रवणं तु यत् । विलिप्तस्तेनदंशः स्यानिर्विषः क्षणमात्रतः॥१॥ घृतादि पेयं दष्टेन भक्ष्यं चिटिकादिकम् । दंशे कर्णमलं बद्धं तुलसीमूलभक्षणम् ॥२॥ जीभ तालुएके मिलनसे अमृत स्रवे है उसके लगानेसे विष दूर होवे. विषसे पीडित मनुष्य कालीमिरच और घृत पीवे और ककोडा आदि खाय और काटे हुए स्थानपर कानका मल बांधे अथवा तुलसीकी जड खाय तो विष दूर होवे ॥१॥२॥ स्त्रीणां चिकित्सा। जन्मवंध्या काकवंध्या मृतवत्सास्तु याः स्त्रियः । तासां पुत्रोदयार्थाय शम्भुगौरीमथाब्रवीत् ॥ १॥ जन्मवंध्या, काकवंध्या और मृतवत्सा ये वंध्याके तीन भेद हैं इनके चिरजीवी पुत्र होनेके अर्थ श्रीमहादेवजीने पार्वतीजीसे उपाय कहा है ॥ १॥ एकापत्या १ मृतापत्या २ कन्यापत्या ३ऽनपत्यता ४ . मृतपुत्रत्व ५ मित्येवं पञ्चधाऽपत्यव्याधयः ॥२॥ .. एकही सन्तान होय, मरी सन्तान होय, कन्याही कन्या होय, सन्तान न होय और जो सन्तान होय सो मरजाय यह पांच प्रकारका रोग नियोंको होता है ॥ २॥ . . AMO: Shrutgyanam Aho 1 Shrutdansin .
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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