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________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः । (३२५) रका जकडना दूर होय । कैथ, शतावरी, धनियां, मिश्री इन सबका गरमीके दिनों में पीना हितकारक होता है ॥ १-२ ॥ इति साधारणयोगाः ॥ सामान्यकायचिकित्सा | एरण्डतैलं विषमप्रवृद्धौ सगोपयस्कं हितमेतदुक्तम् । सराजवृक्षामृतवल्लिवासाक्काथं हितं मारुतशोणितेषु ॥ १ अंडवृद्धि में अंडीका तेल गौके दूधमें मिलाकर पीवे. अमलतास, आमला, गिलोय, अडूसा इनका काढा वादी और रुधिरके विकार - वालोंको हित है ॥ १ ॥ मूत्रेण वा दुग्धसमन्वितं वा सर्वोदरेषु श्वयथौ च शस्तम् । पक्वाशयस्थे पवने प्रयोज्य मेरण्डतैलं हि विरेचनार्थम् ॥ १ ॥ गौ मूत्रमें अंडी का तेल डालकर पीवे, अथवा गौके दूधमें पीवे तो सब उदरके विकार तथा सूजन ये सब नाश होवें. पक्वाशयस्थ वादी में दस्त करानेको अंडी का तेल देवे ॥ १ ॥ उन्मादिनामुन्मदमानसानामपस्मृतौ भूतहतात्मनां हि । ब्राह्मीरसः स्यात्सवचः सकुष्ठः सशंखपुष्पः ससुवर्णचूर्णः ॥ १ ॥ उन्मादवाले और मृगीरोगवाले, भूतबाधावाले इनमें ब्राह्मीके रस में बच, कूठ, संखाहूली और धतूरे के बीजका चूर्ण मिलाकर देवे ॥ १ ॥ अक्ष्यामयेषु त्रिफला गुडूची वातासृजे गोमथितं ग्रहण्याम् । कुष्ठेषु सेव्यं खदिरस्य सारं सर्वेषु रोगेषु शिलाह्वयं च ॥ १ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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