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(३१८) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकार:दाणा खसखसाख्याश्च गोमयस्य रसेन च।
ट्वा पानाय दातव्यं मधूरकप्रशान्तये ॥२॥ सहस्रवेधी पाषाण, कच्वेका कपाल, बडी इलायची, तुलसीके पत्र नारियल की नवीन जटा, खसखसके दाने इनको गोवरके रसमें घिसकर देनसे मधुरकज्वर शांत होवे ॥ १-२॥
मधूरकमन्त्रम् । ॐ नमो अननीपत ब्रह्मचारी वाचा अविचल स्वामिन उकाज सारिवा क्षां क्षः अगधदेशराय वडस्थान कितिहां मुसलीकन् ब्राह्मण तिणे मधुरो कियो ॥१॥
करवा समेत तीन गागर भर उनमें चन्दन घिसकर डाले अगरकी धूप देवे, पीछे सफेद फूल माथेपर रखकर १०८ बार मन्त्र जपे । इस प्रकार सात दिनतक करे, स्त्रीके पास न जाय, किसी स्त्रीकी छोत लावन न पडे । जब मन्त्र पढे तब आप पवित्र होय, सफेद स्वच्छ वस्त्र पहने । रोगीको भीगी चनेकी दाल हनुमानजीके प्रसादसे खिलावे । एक बडा मधुरा पानीके विकारसे होता है। जीभ, दांत काले होवें तो वह रोगी असाध्य है ॥ १॥
केचित्साधारणयोगाः। ... मधुना पिप्पली चूर्ण लिहेकासज्वरापहम् ।
हिकाश्वासहरं कण्डू प्लीहनं वातलोचितम् ॥ १॥ श्वासे कासेतथा शोषे मन्दानौ विषमज्वरे । प्रमेहे मूत्रकृच्छ्रे च सेव्या तु मधुपिप्पली ॥ २ ॥ शहदके साथ पीपलका चूर्ण खानेसे खांसी, श्वास, ज्वर, हिचकी, तापतिल्ली और कातके विकारोंको दूर करें ॥ १-२॥....
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