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________________ भाषाटीकासहितः । मलहम १-२ | तप्ते घृते क्षिपेत्थमुत्तार्य मदनं क्षिपेत् । सर्वस्मिन् गलिते तस्मिवर्ण मेषां विनिक्षिपेत् ॥ १ ॥ कुंकुमं मुरदा शृङ्गं सिन्दूरं हिंगुलं तथा । क्षिप्त्वा ततो जलं भूरि हस्तेन परिमर्दयेत् ॥ २ ॥ दूरीकृत्य जलं सर्वे सिद्धभाण्डे निधापयेत् । दग्धत्रणे दग्धमे चन्द्रिकायां सदाहितम् ॥ ३ ॥ तप्ते घृते क्षिपेत्तुत्थमुत्तार्य च क्षिपेदिमान् । कपिलं मुरदा शृङ्गं खदिरं रङ्ग पत्रिका | क्षिप्त्वा जलं मथित्वा तत्सर्वत्रणविरोपणम् ॥ ४ ॥ सप्तमः ] ( २९५ ) १-धीको तपाकर उसमें नीलाथोथा डालकर उतारलेवे फिर मोम और नीचे लिखी औषधियोंको डाले-केशर, मुरदासिंग, सिन्दूर, सिंगरफ इनको डालकर और बहुतसा जल डालकर हाथसे मर्दन करे फिर जलको अलग कर फिर मलहमको किसी बरतन में रखलेवे । इस महलमके लगाने से जलनेके फफोले, गग्मीके चकत्ते और गरमी दूर होवे । तपे हुए घीमें नीलाथोथा डालकर उतारकर इन औषधि योको और डाले -कवीला, मुग्दासिंग, खैग्सार, गंगके तबक इनमें जल डालकर मथे फिर अच्छे पात्रमें रक्खे इसके लगानेसे संपूर्ण व्रण दूर होवें ॥ १-४ ॥ तप्ते घृते क्षिपेद्रालमुत्तार्य च जलं क्षिपेत् । मथित्वा निर्जलं कृत्वा व्रणादौ तत्प्रयोजयेत् ॥ ५ ॥ मर्दनं मस्तकी तुत्थं रालि सिन्दूर टङ्कणम् । गुग्गुलं मुरदाशृङ्ग बेरजं रंगपत्रिका ॥ ६ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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