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________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२८७) पलितस्य विनाशश्च विभिलेपैर्न संशयः ॥ ६॥ ताम्रचूणे लोहचूर्ण तुत्थं माजूफलं तथा। धात्री ,गरसं नीली महिदीसर्वमीलितम् ॥७॥ लोहपात्रे तु लोहस्य मुसलेन विघर्षयेत् । शीर्षकूर्चादिपलिते लेपनात्केशरंजनम् ॥ ८॥ काकिण्याः पत्रमूलं सहचरसहितं केतकीनां च कन्दं छायाशुष्कं च भृङ्गं त्रिफलरसयुतं तैलमध्ये निधाय । निक्षिप्त्वा लोहभाण्डे क्षितितलनिहितं मासमेकं च यावत्केशाः काशप्रकाशाभ्रमरकुलनिभा मासमेकं भवन्ति॥९॥ - लोहचूरा, भांगग, त्रिफला, कालीमिट्टी इनको लोहेके पात्रमें गन्नेके रसमें एक मास पर्यंत रखकर लेप करे तो बालोंका गिरना बन्द होजाय । त्रिफला, नीलके पत्ते, लोहका चूरन इनकी समान मात्रा ले भाँगरेके रस और बकरी के मूत्रमें पीसकर लगानेसे काले बाल हो जावें. त्रिफला, लोहे का चूर, अनारकी छाल पांच २ पल लेकर भांगरेके रसमें डालकर एक महीना जमीनमें गाड देवे. फिर बकरीके दूधमें मिलाकर गतमें लेप करे और ऊपर अंडके पत्ते बांधकर सोवे. फिर प्रातःकाल स्नान करडाले तो सफेद बाल एक वारके लेपसे काले हो जावे. तांबेका चूरा, लोहेका चूग, नीलाथोथा, माजूफल, आमले, नील, मेहँदी इनको लोहके बरतनमें लोहेके मूसलसे घोटे. इसके लगानेसे सफेद बाल काले होजावें, काकजंघाके पत्ते और जड, पियावाँसा, केतकीकी जड इनको छायामें सुखाकर भांगरा, त्रिफलाके Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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