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________________ ( २६६ ) योगचिन्तामणिः । [ मिश्रधिकार: कालको भक्षण करे ता हजार स्त्रियोंसे भोग करनेकी शक्ति होवे, वृद्ध देहवाला तरुणताको प्राप्त होवे । स्त्रियोंको सदैव वश करे । इसको वैद्योंनें कामदेवरस कहा है ॥ १-३ ॥ शुक्रल औषधिः । यस्माच्छुक्रस्य वृद्धिः स्याच्छुकलं च तदुच्यते । यथाश्वगन्धा मुशली शर्करा च शतावरी ॥ दुग्धमाषाश्च भल्लाताः फलमज्जामलानि च ॥ १ ॥ जिस औषधिसे शुक्र (वीर्य) बढे उसको शुकल कहते हैं । जैसेअसगंध, मुशली, मिश्री, शतावरी, दूध, उडद, भिलावे, आम्रादिफलकी मज्जा और आमलादिक ॥ १ ॥ विरेचकरसः । नेपाल कं पारदटंकणाक्षं क्षारो यवानी मरिचानि पथ्या । एरण्डबीजानि च गन्धकं च इच्छाविभेदी रसचक्रवर्ती १॥ शुद्ध जमालगोटा, ३ टंक, पारा ३ टंक, फूला सुहागा, जवाखार, अजवायन, मिरच, हरड, अंडी, गन्धक इनको एकत्र कर पीसलेवे, यह रस इच्छाभेदी नाम सब रसोंका राजा है ॥ १ ॥ त्रिकटु त्रिफला सूतं शुद्धं गन्धकटंकणम् । सर्वैः समानो जैपालो राजयोग्यं विरेचनम् ॥ २॥ सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, शुद्ध पारा, गन्धक, फूला सुहागा, शुद्ध जमालगोटा सबके बराबर लेवे यह दस्तोंके लिये राजयोग्य है || २ || नेपालमरिचटंकणसमभागो मेलि एकीकृत्य । अर्द्ध हिंगुलभागो पयsो बुद्धो छुरीकारो ॥ ३ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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