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योगचिन्तामणिः ।
[ मिश्रधिकार:
कालको भक्षण करे ता हजार स्त्रियोंसे भोग करनेकी शक्ति होवे, वृद्ध देहवाला तरुणताको प्राप्त होवे । स्त्रियोंको सदैव वश करे । इसको वैद्योंनें कामदेवरस कहा है ॥ १-३ ॥
शुक्रल औषधिः ।
यस्माच्छुक्रस्य वृद्धिः स्याच्छुकलं च तदुच्यते । यथाश्वगन्धा मुशली शर्करा च शतावरी ॥ दुग्धमाषाश्च भल्लाताः फलमज्जामलानि च ॥ १ ॥
जिस औषधिसे शुक्र (वीर्य) बढे उसको शुकल कहते हैं । जैसेअसगंध, मुशली, मिश्री, शतावरी, दूध, उडद, भिलावे, आम्रादिफलकी मज्जा और आमलादिक ॥ १ ॥
विरेचकरसः ।
नेपाल कं पारदटंकणाक्षं क्षारो यवानी मरिचानि पथ्या । एरण्डबीजानि च गन्धकं च इच्छाविभेदी रसचक्रवर्ती १॥
शुद्ध जमालगोटा, ३ टंक, पारा ३ टंक, फूला सुहागा, जवाखार, अजवायन, मिरच, हरड, अंडी, गन्धक इनको एकत्र कर पीसलेवे, यह रस इच्छाभेदी नाम सब रसोंका राजा है ॥ १ ॥
त्रिकटु त्रिफला सूतं शुद्धं गन्धकटंकणम् । सर्वैः समानो जैपालो राजयोग्यं विरेचनम् ॥ २॥ सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, शुद्ध पारा, गन्धक, फूला सुहागा, शुद्ध जमालगोटा सबके बराबर लेवे यह दस्तोंके लिये राजयोग्य है || २ ||
नेपालमरिचटंकणसमभागो मेलि एकीकृत्य । अर्द्ध हिंगुलभागो पयsो बुद्धो छुरीकारो ॥ ३ ॥
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