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________________ (२५६) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारः- हिंगुल, शुद्ध तेलिया मीठा, मिरच, सुहागा, पीपल इनको जम्बीरीके रसकी चार प्रहरकी भावना देवे । यह रस खांसी श्वास, सनिपात, संग्रहणी, शूल, प्रमेह, मृगी, वायु, छर्दि इतने रोगोंको दूर करता है। यह आनन्दभैरव रस है ॥ १॥२॥ कालारिरसः १-२ । त्रिशाणं पारदं चैव गंधकं शाणपंचकम् । त्रिशाणं वत्सनागं च पिप्पली दशशाणिका ॥१॥ लवंगं च चतुःशाणं त्रिशाणं कनकाह्वयम् । टंकणं वह्निशाणं च पंच जातीफलं क्षिपेत् ॥२॥ मरिचं पञ्चशाणं स्यादकल्लं च त्रिशाणकम् । करीराईकनिम्बूकैर्मदयेच्च दिनत्रयम् ॥३॥ कालारिरसनामाऽयं वातव्याधिविनाशनः। मर्दने भक्षणे नस्ये द्विगुंजं संन्निपातजित् ॥ ४॥ १-पारा ३ टंक, गन्धक ५ टंक, तेलिया मीठा ३ टंक, पीपल १. टंक, लौंग ४ टंक, धतूरा ३ टंक, सुहागा फूला ३ टंक, जायफल ५ टंक, मिरच ५ टंक, अकरकरा ३ टंक, करील, अदरक इनको ले नींबू के रसमें तीन दिन मर्दन करै यह कालारि नाम रस मर्दन और भक्षण करै, तथा नास देवे तो वातरोगोंको दूर करै, दो रत्ती प्रमाण खाय तो सन्निपातको जीते ॥ १-४ ॥ शुद्धं सूतं मृतं तानं गन्धकं नागरं विषम् । जातीफलं लवङ्गानि कनकं मरिचैः सह ॥५॥ रसाच द्विगुणं ग्राह्यं टंकणं भृष्टमेव च । पिप्पली करहाटश्चसधिगृह्य कोविदैः॥६॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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