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सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२३९)
गुडं च गुग्गुलं चैव लाक्षापामाण्डटंकणम् । उष्णं मीनं समादाय समभागानि कारयेत् ॥ द्रावयेत्सर्वसत्त्वानि पाषाणादपि मृत्तिका ॥१॥ २-लाख, पमार, सुहागा, उन, मछली इनको समान ले इन सबको मिलाकर मूसमें सत्व निकाले, इससे पत्थरसे भी मिट्टीका सत्त्व निकलता है ॥ १॥
मृतधातुसंजीवनी। घृतमधुटंकणगुनागुडेन पिण्डीकृतो मृतो धातुः। स पुनर्जीवति यदा तदा निरुत्थो मृतो धातुः ॥१॥ घी, शहद, सुहागा, चिरमिटी, गुड इनमें धातुको मिलाय गोली बनावे तो मरी हुई धातु जीवे और फिर उस धातुको मारै तो वह निरुत्थ अर्थात् पूर्ण मृत हो जाता है ॥ १ ॥
पाराशोधनविधिः । कुमारी चित्रकं व्याधिमूलकांकुल्यवारिणा । पृथक्पृथक्चतुर्यामं मर्दयेत्सर्वकर्मसु ॥१॥ अंकोलेन विषं हन्ति पावकं हन्ति चित्रकैः । राजवृक्षैमलं हन्ति कुमारीसप्तकंचुकैः॥२॥ पारेको घीग्वारपाठेके रसमें मर्दन करै, चार प्रहर चीता. अमलतास, कूटमें मर्दन करे, चार प्रहर अंकोलकी जडके रसमें मर्दन करे, फिर सब काममें लावे । अंकोलके मर्दनसे पारेका विष नाश होवे, चीतेसे मर्दन करनेसे दाह दूर होवे, अमलतासके मर्दनसे मल दूर होवे, कुमारीरसके मदन स सात काँचली पारेकी दूर होवें ॥ १-२॥
हरगौरीरसः। रसभागो भवेदेको द्विगुणो गंधको मतः।
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