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________________ (२३२) योगचिन्तामणिः। मिश्राधिकार:क्षिप्त्वा तेन मुखं रुद्धा मृद्भाण्डे तन्निरोधयेत् ।। शुष्कं गजपुटे पक्त्वा चूर्णयेत्स्वांगशीतलम् ॥३॥ रसो राजमृगांकोऽयं चतुगुजः क्षयापहः। दशपिप्पलिकाक्षौद्रे एकोनत्रिंशददूषणैः ॥४॥ पारेकी भस्म तीन भाग, सोनेका भस्म एक भाग, तांबेकी भस्म एक भाग, शिलाजीत, गन्धक, शुद्ध हरिताल ये सब दो दो भाग सबका मिला चूर्ण कर कौडियोंमें भरदेवे, फिर बकरीके दूध और सुहागेसे इनका मुह बन्द कर देवे फिर मिट्टीके पात्रमें भरकर कपरमिट्टी कर सुखा लेवे, फिर गजपुटकी आंच देवे, जब शीतल होजाय तब निकाले. यह राजमृगांकरस चार रत्ती बलाबल देखकर देवे तो क्षयरोगका नाश करे । पीपल १०, शहद, मिरच २९ के साथ ले । यह क्षयादि रोगोंको नाश करे ॥ १-४ ॥ ___ ताम्रमारणविधिः। सूक्ष्माणि ताम्रपत्राणि कृत्वा संस्वेदयेद् बुधः । वासरत्रयमम्लेन ततः खल्वे विनिक्षिपेत् ॥ १॥ पादांशं मूतकं दत्त्वा याममम्लेन मर्दयेत् । तत उद्धृत्य पत्राणि लेपयेद्विगुणेन च ।। २ ।। गन्धकेनाम्लपिष्टेन तस्य कुर्याच्च गोलकम् ।। धृत्वा तद्गोलकं भाण्डे शरावेण च रोधयेत् ॥३॥ वालुकाभिः प्रपूर्याथ विभूतिलवणांबुभिः। दत्त्वा भाण्डं मुखे मुद्रां ततश्शुल्ल्यां विपाचयेत्॥४॥ क्रमवृद्धाग्निना सम्यग्यावद्यामचतुष्टयम् । स्वांगशीतलमुद्धृत्य मृततानं शुभं भवेत् ॥५॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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