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________________ पठः] भाषाटीकासहितः। भल्लातकतैलम् । भल्लातकव्यूषणमक्षचूर्ण कुष्ठं च गुंजा त्रिफला च तैलम् । क्षारांश्च पंचाथ विपच्य चैतदभ्यंजनादन्ति च कुष्ठद्रुम् ॥१॥ भिलावा, सोंठ, मिरच, पीपल, बहेडा, कूठ, चिरमिटी, त्रिफला, कडवातेल, पांचों नोन इन औषधियोंको पकाकर तेल बनाकर इसको मर्दन करनेसे कोढ तथा दाद दूर होवे ॥ १ ॥ अर्कतैलम् । अर्कपत्ररसे पक्कं हरिद्राकल्कसंयुतम् । शोधयेत्सार्षपं तैलं पामाकच्छूविचर्चिकाः ॥ १ ॥ आकके पत्तोंके रसमें हलदी पीसकर काढा करे, सरसोंका तेल डालकर पकावे, जब, तेल शेष रहे तब उतारलेवे यह तेल पामा, दाद, विचर्चिकाको दूर करता है ॥१॥ नीलकाद्यं तैलम् । नीलका केतकीकन्दं भृगराजकुरण्टकः । तथाऽर्जुनस्य पुष्पाणि बीजकाक्षसमानपि॥ १॥ कृष्णास्तिलाश्च तगरं समूलं तगरं तथा। अयोरजः प्रियंगुश्च दाडिमत्वग्गुडूचिका ॥२॥ त्रिफला पद्मकाष्ठं च कल्कैरेभिः पृथक्पृथक् । कर्षमानं पचेत्तैलं त्रिफलाक्वाथसंयुतम् ॥३॥ गराजरसेनैव सिद्ध केशः स्थिरीभवेत् । अकालपलितं कण्डूमिन्द्रलुप्तं च नाशयेत् ॥ ४॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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