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________________ षष्ठः ] भाषाटीकासहितः। (२०९) पीतदारु च यष्ट्याहूं सर्जिक्षारं च जीरकम् । देवदारु च कर्षाशचूर्ण तैले विमिश्रयेत् ॥ ४ ॥ वज्रतैलमिति ख्यातमभ्यंगात्सर्वकुष्ठनुत् ॥५॥ थूहरका दूध, आकका दूध, धतूरेका रस, चीतेका रस, भैसके गोबरका रस इन सबके बराबर तिलका तेल डालकर पकावे, जब तेलमात्र रहजाय तब उतार लेवे, तेल एक प्रस्थ डाले फिर गोमूत्र चौगुना डालकर पकावे फिर चीता, गण्डक, मनसिल, हरताल, वायविडङ्ग, अतीस, तेलियामीठा, सज्जीखार, जीरा, देवदारु, इनको चार चार टंक, चूर्ण कर डाले । इस तेलके लगानेसे सम्पूर्ण कुष्ठ नाश होवें ॥ १-५॥ कुष्ठे कालानलतैलम् । विशारं पटुपञ्चकोलरजनी तालं शिला गन्धकं । सिन्दूरं रसराठरामठनृपं लोहं रसोनांजनम् । कुष्ठं तुत्यकदारुवेल्लमहिजं स्नुह्यर्कदुग्धप्लुतं । पाच्यं सर्षपतैलमष्टदधिकं कुष्टे हि कालानलम् ॥१॥ सजी, जवाखार, सुहागा, पांचों नोन, बेर, हलदी, हरताल, मनसिल, गन्धक, सिन्दूर, पारा, मैंनफल, हींग, भांगरा, सार, लहसन, रसौंत, कूठ, नीलाथोथा, दारु हलदी, वायविडंग, चिगयता, थूहर, आकका दूध इन सबको बराबर लेकर सरसोंका तेल आठ पल, गायका महा ८ पल ले तैल बना लेवे । यह तेल १८ प्रकारके कुष्ठोंका नाश करे ॥ १ ॥ सिन्दूरादितैलम् १-२ । सिन्दूरं चन्दनं मांसी विडंगं रजनीद्रयम् । प्रियंगुः पद्मकं कुष्ठं मनिष्ठा खदिरं बचा ॥१॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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