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________________ माषाटोकासहितः । क्षुद्राधान्यकशुण्ठीभिर्गुडूचीमुस्तपद्मकैः । रक्तचन्दनभूनिम्बपटोलवृषपुष्करैः ॥ २ ॥ कटुकेन्द्रयवारिष्टभाङ्गपर्पटकैः समैः । काथं प्रातर्निषेवेत सद्यः शीतज्वरच्छिदम् ॥ ३ ॥ चतुर्थः ] ( १५९ ) २ - कटेरी, धनियां, सोंठ, गिलोय, मोथा, पदमाख, रक्तचन्दन, चिरायता, पटोलपत्र, अडूसा, पोहकरमूल, कुटकी, इन्द्रजव, नींवकी छाल भारंगी, पित्तपापडा यह सब बराबर ले काढा बनाकर पीवे तो शीतज्वरका नाश करे ॥ २ ॥ ३ ॥ शुण्ठ्चादिक्कायः । नागरं देवकाष्ठं च धान्यकं वृहतीद्वयम् । दद्यात्पाचनकं पूर्व ज्वरिताय हितावहम् ॥ १ ॥ सोंठ, देवदारु, धनियां छोटी बडी दोनों कटेरी इन पांच औषधि योंका काढा पाचनके अर्थ तथा ज्वरनाशनार्थ ज्वरवालोको देवे ॥१॥ धान्यपंचकक्काथः १-२ । धान्यनागरमुस्तं च बालकं बिल्वमेव च । आमशूलविबंधनं पाचनं वह्निदीपनम् ॥ १ ॥ १- धनियां, सोंठ, मोथा, नेत्रवाला, बेलगिरी इनका आमशूल तथा विबंधको दूर करे और अग्रिको दीप्त करे धान्यनागरजः क्वाथः पाचनो दीपनस्तथा । एरण्डमूलयुक्तञ्च जयेदामानिलव्यथाम् ॥ १ ॥ '' काथ १ ॥ २ - धनियां, सोंठ इनका काढा पाचन, दीपन करे और जो रंडी जड डाले तो आमवातको दूर करे ॥ १ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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