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योगचिन्तामणिः ।
[ काथाधिकारः
मंजीठ, इग्ड, बहेडा आँवला, फूलप्रियंगू, गिलोय, ब्राह्मी, वच, पोहकरमूल, भांगरा, सोंठ, मिरच, पीपल, चिरायता, अतीस, संभालू, अमलतास, त्रायमाण, खैरसाल, कुटकी, छाल, पाठा (नेपाली चिरायता ), निसोत, कुटकी, दोनों हलदी, पित्तपापडा, अडूसा, इंद्रायण, जवासा, इन्द्रयव, कूठ, अंडकी जड, नींबकी छाल, चीता, शतावरी, भारंगी, चन्दन, कचूर धायके फूल, छड, पाढल, निसोथ, मालकांगनी, नेत्रवाला, दन्ती, (वृक्षविशेष की जड, ढाकके बीज, चन्दन, मुंडी, वायविडंग, कायफल, अरनी, कंजुआ, धायके फूल, और मूल, दोनो कटेरी, देवदारु, मोथा, कमलगट्टा, पटोलपत्र, इनका क्वाथ करे, जब इसका आठवां हिस्सा रद्दजावे तब इसके पीने से वातरक्त और १८ प्रकारके कुष्ठ नाश होवें ॥ १-३ ॥ कुष्ठे खदिरादिक्वाथः ।
खदिरः कुण्डली वासा पटोलं च फलत्रिकम् । अरिष्टसमभगोऽयं क्वाथः कुष्ठविनाशनः ॥ १ ॥ खैरसार, गिलोय, अडूसा, पटोल पत्र, त्रिफला, नीम की छाल इनकी बराबर मात्रा लेकर मिट्टीके बरतन में काढा कर पीवे तो कुष्ठ दूर होवे ॥ १ ॥
सत्रिपातज्वरे भूनिंबादिकाथः ।
भूनिम्बदारुदशमूलमहौषधाब्दति केन्द्रबीजघनके भकणाकषायः । तन्द्रा प्रलापकसनारुचिदाहमोहश्वाशादियुक्तमखिलं ज्वरमाशु हंति ॥ १ ॥
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चिरायता, देवदारु, दशमूल, सोंठ, जीरा कुटकी, इन्द्रजव, गजपीपल, इनकी समान मात्रा लेकर क्वाथ पकावे फिर ठंडा कर पीवे तो निद्रा, प्रलाप खांसी, श्वास, अरुचि, दाह, मोह, मूर्च्छा, ज्वर ये संपूर्ण दूर होवें ॥ १ ॥
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