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________________ तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (११३) कुष्ठस्य नव भागाः स्युर्दशभागा हरीतकी। एकादश चित्रकस्य अजमोदा च द्वादश ॥३॥ गुडश्च सर्वद्विगुणो गुटिकां कारयेदृढाम् । हन्यादनेकवातांश्च हर्ष चैव चतुर्दश ॥४॥ अष्टादशैव गुल्मानि प्रमेहान्विशति तथा । हृद्रोगकुष्ठशूलानि वातगुल्मं गलग्रहम् ॥५॥ श्वासं च ग्रहणी पाण्डुमग्निमांद्यारुची तथा। धन्वंतरिकृतो योगो निजपुत्रस्य हेतवे ॥ ६॥ २-हिंग १ भाग, वच २ भाग, सैंधानोन ४ भाग, जीरा ५ भाग, सोंठ ६ भाग, मिरच ७ भाग, पीपल ८ भाग, कूठ ९ भाग, हरड १० भाग, चीता ११ भाग, अजमोद १२ भाग, इन सबसे दूने गुडमें गोली ७ टंक प्रमाणकी बनावे । यह अनेक वायुगेग, १४ प्रकारका हर्ष, १८ प्रकारका गुल्म, २० प्रकारका प्रमेह, हृदयरोग, कुष्ठ, शूल, वायगोला, गलग्रह, श्वास, संग्रहणी, पांडुरोग, अग्निमांद्य और अरुचि इन रोगोंको दूर करे । यह योग धन्वंतरिने अपने पुत्रके लिये कहा है ॥ १-६ ॥ उदरविकारमें एलादिवटिका । एलीयकं कणा पथ्या शुण्ठी चित्रकटंकणम् । राजिका सर्जिका सौरो विडंगाजाजिसैन्धवम् ॥ गुडेन गुटिका कार्या यकृत्प्लीहविनाशिनी ॥१॥ इलायची पीपल, हग्ड, सोंठ, चित्रक, सुहागा, राई, सज्जी, शोरा, वायविडंग, जीरा, सेंधानोन इनको बराबर लेवे और गुडके साथ गोली बनाये तो यकृत प्लीहादि रोगोंको दूर करे ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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