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द्वितीयः] भाषाटीकासहितः। (८७) एतत्सुदर्शनं नाम चूर्ण दोषज्वरापहम् । ज्वरांश्च निखिलान्हन्ति नात्र कार्या विचारणा ॥७॥ सन्निपातोद्भवांश्चापि मानसानपि नाशयेत् । शीतज्वरैकाहिकादीन्मोहं तन्द्रां भ्रमं तृषाम् ॥८॥ श्वासं कासं च पाण्डंच हृद्रोगं हन्ति कामलाम् । त्रिकपृष्ठकटीजानुपार्श्वशूलनिवारणः ॥ ९॥ शीताम्बुना पिवेद्धीमान्सर्वज्वरनिवृत्तये । यथा सुदर्शनं चक्रं दानवानां विनाशकम् ॥ १० ॥ तथाज्वराणां सर्वेषामिदं चूर्ण प्रशस्यते । नानादेशोद्भवांश्चैव नीरदोषान् व्यपोहति ॥ ११॥ त्रिफला, हलदी, दारुहलदी, छोटी बडी दोनों कटेरी, कपूर, सोंठ, मिरच, पीपल, पीपलामूल, मूर्वा, गिलोय, धनिया, अडूसा, कुटकी, पित्तपापडा, मोया, त्रायमाण, नेत्रवाला, नीमकी छाल, पोहकरमूल, मुलहटी, जवासा, अजमायन, इन्द्रयव, भारंगी, सहजनेके बीज, फिटकरी, वच, तज, पद्माख, खस, चन्दन, अतीस, खरेटी, सरिवन, पिठवन, वायविडंग, तगर, चित्रक, देवदारु, चव्य, पटोलपत्र जीवक, ऋषभक, लौंग, वंशलोचन, कमलगट्टा, कंकोल, तमालपत्र, जावित्री, तालीसपत्र, ये सब औषधि बराबर भाग ले चूर्ण करे और चूर्णसे आधा चिरायता मिलावे. यह सुदर्शनचूर्ण त्रिदोषज्वर तथा सम्पूर्ण ज्वरोंको नाश करे वात पित्त कफोंके ज्वर, इन्दज, आगन्तुक, धातुमें स्थित, विषमज्वर, सत्रिपातज ज्वर, मानस (जो मनसे सम्बन्ध रखता हो), शीतज्वर, इकतरा, मोह, तन्द्रा, भ्रम, प्यास, श्वास, खांसी, पाण्डुरोग, हृद्रोग, कामला, त्रिकपीडा, पीठ, कमर, घोंटू, पसवाडा, इनका दुखना ये सब नष्ट होवे. जैसे
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