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________________ द्वितीयः ] भाषाटीकासहितः। (८३) कासश्वासक्षयहरं हस्तपादांगदाहजित् । मन्दाग्निशुष्कजिहां च पार्श्वशूलमरोचकम् । ज्वरमूर्ध्वगतं रक्त पित्तमाशु व्यपोहति ॥३॥ मिश्री १६ कर्ष, वंशलोचन ८ कर्ष, पीपल ४ कर्ष, छोटी इलायची २ कर्ष, तज १ कर्ष इन सबका चूर्ण कर शहदमें मिलाकर खावे तो खांसी, श्वास, क्षय और हाथ पैरोंके दाहको दूर करे, मन्दाग्नि, जीभका सूखना, पसवाडेका शूल, अरुचि, ज्वर, ऊर्ध्वगत रुधिरके विकार तथा पित्तके रोगोंको यह सितोपलादि चूर्ण दूर करता है ॥ १-३॥ श्रीखण्डादिचूर्ण। श्रीखण्डं मरिचं लवंगफलनं द्राक्षा तजं पत्र रक्तं चन्दनवालकं मधुनिशा शुण्ठीकणाग्रन्थिकाः । धान्या जीरककेशरं जलफलं खजूरसम्यक्त्वचश्शूर्ण भेषजमिश्रितं सममितं मात्रा बिडालं पदम् ॥ १ ॥ श्वासं शोषयुतं क्षयज्वरहरं पित्तप्रमेहापहं रक्तस्तापजडं प्रकाशमरुचिं व्याधि भगेन्द्रापहम् । क्षीणे देहपतत्रययुताबलं सर्वातिसारापहं सर्वव्याधिविनाशनं निगदितं श्रीखण्ड. चूर्णाभिधम् ॥२॥ चन्दन, मिरच, लौंग, जायफल, दाख, तज, पत्रज, लालचन्दन, नेत्रवाला, मुलहठी, हलदी, सोंठ, पीपल, पीपलामूल, धनियां, जीरा, केशर, पवहडी, छुहारा इन सबको समान भाग लेवे, सबकी बराबर मिश्री मिलादेवे और चार टंकके अंदाज नित्य खाय तो शोषयुक्त श्वास, क्षय, ज्वर, पित्त, प्रमेह, रुधिरविकार, ताप, जडता, बहुत Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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