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स्वमाध्याय । कृष्णवर्णा विकृताङ्गी नग्ना कुञ्चितकुन्तला ॥ स्वप्ने नारी यमाकृष्य रमते स म्रियेत वै॥५६॥कज्जलेन च तैलेन लिप्ताङ्गो रासभोपरि ॥ समारूढो यमदिशं यो यायात्स म्रियेत वै ॥२७॥ खरक्रमेलकयुतं समारुह्य च वाहनम् ॥ जागृयात्स्वप्नमध्यायो मृत्युस्तस्य ध्रुवं भवेत् ॥ ५८॥ यः पङ्किलेड म्भसि स्वप्ने उन्मज्जति निमजति ॥ निर्गच्छति च कृच्छ्रेण भूतेन म्रियते च सः॥५९॥ नृत्यन्मत्तश्च यो मर्यो यमस्य नगरीमुखम् ॥प्रेक्षतेवा प्रविशति सप्राणैर्विरही भवेत्॥६०॥ रक्ताङ्गरागवसनभूषणैरतिभूषिताम् ॥ नारी विचुम्ब्य सुरतं
यः करोति म्रियेत सः॥६॥ स्वप्ने क्रूरं च पुरुषं यः पश्यति निरन्तरम् ॥ वर्षमध्येऽसवस्तस्य यमस्यातिथयः किल ॥ ॥ ६२॥ हर्षोत्कर्षः स्वप्नमध्ये विवाहो वापि जायते ॥ यस्य सोऽपि विजानीयान्मृत्युमागतमन्तिके॥ ६३॥ स्वप्ने नारी खपरेषु निधायानं च यं नरम्।। रात्रावभिसरेत्सोऽपिन चिरेण विनश्यति ॥ ६४॥ पिशाचश्वपचप्रेतप्रकृति प्रमदां गतः॥
कन्यां च कामी यो गच्छेत्स आश म्रियते नरः ॥ ६५॥ स पुरुषको स्वप्नमें आलिङ्गन करतीहै वह शीघ्र मरताहै॥ ५५ ॥ काली विकृताङ्गी ( नाक आदिसे रहित) नंगी ठेढे केशोंवाली स्त्री स्वप्नमें जिस पुरुषको खेंचकर रमण करतीहै वह निश्चय मरताहै॥५६॥स्या हीसे अथवा तेलसे युक्त जो पुरुष गधेके ऊपर चढकर दक्षिणदिशाको जाय वह पुरुष निश्चय मरे ॥१७॥ गधा और ऊंटसे युक्त सवारीमें चढकर जो स्वप्नके बीचमें जागे उसकीमृत्यु निश्चय होय ॥१८॥ जो पुरुष कीचडयुक्त जलमें स्वप्नमें डूबताहै निकलताहै ऊपरको उठताहै वह बडे दुःखसे भरताहै ॥ ५९॥ नाचताहुआ उन्मत्त जो पुरुष यमराजकी नगरीके मुखको देखताहै, अथवा प्रवेश करताहै वह प्राणसे रहित होता अर्थात् मरताहै ॥ ६० ॥ लालअङ्ग लालवस्त्रोंसे गहनोंसे शोभित स्त्रीका मुखचुम्बन कर जो विषय करताहै वह मरताहै ॥ ६१ ॥ जो स्वप्नमें क्रूरपुरुषको निरन्तर देखताहै, उसके प्राण वर्षके भीतर यमराजके अतिथि . होतेहैं अर्थात् वर्षके बीचों मरताहै ॥ १२ ॥ स्वप्नके बीचमें जिसको अत्यन्त आनन्द होताहै, अथवा विवाह होताहै उसकी भी मृत्यु समीप आई जानना ॥ ६३ ॥ स्वप्नमें स्त्री खप्पडमें अन्न रखकर जिस पुरुषको अभिसरण करे वह पुरुष भी शीघ्र नाशको प्राप्त होय ॥६४ ॥ पिशाच चाण्डाल
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