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(८)
स्वमाध्याय। स्यात्तदा पुनरप्युक्तप्रकारेणैवैकविंशतिदिनपर्यन्तं साधयेत् ॥ कार्य विचिन्त्य निपुणो रात्रौ जप्त्वैकविंशतिम् ॥शयीत स्वप्नमध्ये तु स पश्येदशुभं शुभम् ॥ ३५॥ अथापरः स्वप्न प्रदो विद्यान्मन्त्रः॥ (ॐ ह्रीं मानसे स्वप्नं सुविचार्य विद्ये वद वद स्वाहा ॥ ११॥) शुचिर्भूत्वा हविष्यान्नं भुक्त्वा जवायुतं मनुम् ॥ संध्यायां भारतीपूजां कृत्वा स्वापो विधीयताम् ॥ ३६ महाविद्या समागत्य स्वप्ने ब्रूयाच्छुभाशुभम् ॥३७॥ अथापरं मन्त्रवरं ब्रह्मवैवर्तभाषितम् ॥ब्रवीमि सद्यः फलदमनुभावकरं परम् ॥ ३८ ॥ (ॐ ह्रीं श्रीं की पूर्वदुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा ॥ १२॥) कल्प वृक्षो हि भूतानां मन्त्रः सप्तदशाक्षरः ॥ शुचिश्च दशधा जवा दुष्टस्वप्नं न पश्यति ॥ ३९ ॥ शतलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥ सिद्धमन्त्रश्च लभते सर्वसिद्धिं च वाञ्छितम् ॥४०॥ अथापरः स्वप्नप्रदो मृत्युञ्जयमन्त्रः॥ (ॐ मृत्युञ्जयाय स्वाहा ॥ १३॥) इमं मन्त्रं दशलक्षं जपित्वा
मन्त्रसिद्धिः ॥ दृष्ट्वा च मरणं स्वप्ने शतायुश्च भवेन्नरः॥ विच्छेद होय तो फिर उक्तप्रकारसे २१ दिनतक साधन करै । बुद्धिमान मनुष्य रात्रिमें कार्यको विचारकर २१ वार इस मंत्रको जप कर शयन करै तो स्वप्नके बीच शुभाशुभ को देखताहै ॥ ३५ ॥ अवश्य स्वप्नदेनेवाला दूसरा विद्या मंत्र कहतेहैं । (ॐ हीं मानसेति० ११ ) यह मूलका मंत्रहै पवित्र हो हविष्यअन्नको खाताहुआ १०००० मंत्र जप करे और संध्यामें सरस्वतीको पूजा करके सोरहै ॥ ३६ ॥ तो रात्रिमें महाविद्या आकर स्वप्नमें शुभाशुभ कहती है॥३७॥ अब दूसरा मंत्र ब्रह्मवैवर्त पुराणका कहाहुआ शीघ्र फलदेनेवाला अनुभवसिद्धकहताहूं ॥३८ ॥ ॐ ह्रीश्रीक्लीपूर्वदुर्गतिनाशिन्यमहामायायैस्वाहा । १२ ) प्राणियों को कल्पवृक्षकी समान यह सत्रह अक्षरवाला मंत्रहै इसको पवित्र होकर दशवार जपनेसे दुःस्वप्न दिखाई नहीं देता ॥ ३९ ॥ एक करोड़ जपसे मनुष्यों को मंत्रसिद्धि होजातीहै मंत्रसिद्ध होनेसे सब मनवांछित प्राप्त होतेहैं ॥ ४० ॥ अब दूसरा स्वप्नपद मृत्युंजय मंत्र कहतेहै (ॐ मृत्युंजयाय स्वाहा १३) इस मंत्रके दश लाख जपनेसे मंत्रसिद्धि होतीहै स्वप्नमें अपनी मृत्यु देखकर मनुष्य
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