________________
॥ श्रीः॥ स्वप्नाध्यायः।
-CONSTRESOR
प्रथमः कल्लोलः १. ॥ श्रीगणेशायनमः। श्रीनृसिंह रमानाथं गोकुलाधीश्वरं हरिम् ॥ वन्दे चराचरं विश्वं यस्य स्वप्नायितं भवेत् ॥ १॥ स्व प्राध्यायं प्रवक्ष्यामि मुह्यन्ते यत्र सूरयः ॥ नानामतानि संचिंत्य यथाबुद्धिबलोदयम् ॥ २ ॥ स्वप्नं चतुर्विधं प्रोक्तं दैविकं कार्यसूचकम् ॥द्वितीयं तु शुभस्वप्नं तृतीयमशुभं तथा ॥३॥ मिश्रं तुरीयमाख्यातं मुनिपुङ्गवकोटिभिः ॥ तत्रादो दैविकस्वप्ने मंत्रसाधनमुच्यते ॥ ४॥ तदादौ कालयामानां विचारं कुर्महे वयम्॥ तत्र च प्रथमे यामे स्वप्नं वर्षेण सिध्यति॥५॥ द्वितीये मासषड्वेन षभिः पक्षैस्तृतीयके ॥ चतुर्थे त्वेकमासेन प्रत्यूषे तद्दिनेन च ॥ ६॥ गोरेणूच्छुरणे चाथ तत्कालं जायते फलम् ॥ स्वप्नं दृष्टं निशि प्रातर्गुरवे विनिवे
गौरि गिरा गणपति सुमार, शंभुचरण शिरनाय । .
जगहितः स्वमाध्यायकी, भाषा लिखहुँ बनाय ॥ श्रीनृसिंह रमानाथ गोकुलके अधिपति भगवान्को प्रणाम करता हूं कि, यह चर अचर संवार जिनकी सत्तासे स्वप्नायित होरहाहै ॥ १ ॥ जिसमें बड़े बडे कवि मोहित होजातेहैं, उस स्वप्नाध्यायको कहता हूं और उसमें बुद्धिफेअनुसार अनेकोंमतोंका निर्णय करूंगा ॥ २ ॥ चार प्रकारके स्वप्न होतेहैं, दैविक जो कार्यकी सूचना देनेवाले, दूसरे शुभस्वप्न, तीसरे अशुभ ।। ॥ ३ ॥ और चौथे शुभ अशुभ मिले हुए होतेहैं । ऐसा अनेकमुनियोंका मतहै, उसमें पहले दैविक स्वप्नमें मंत्रका साधन कहतेहैं ॥ ४ ॥ उसमें पहलेकाल और पहरका विचार करते हैं रात्रिके पहले पहरमें देखाहुआ स्वप्न एकवर्षमें फल करताहे ॥ ५ ॥ दूसरे पहरमें देखाहुमा छः महीनेमें फल करताहै । तीसरे पहरमें देखाहुआ तीनमहीनमें । चौथे पहरमें देखाहुआ एकमहीनेमें और प्रभातमें देखाहुआ उसीदिन फल करताहै ॥ ६ ॥ और गौवोंके चरनेको जातेसमय देखाहुआ स्वप्न तत्काल फल करताहे । रात्रीका देखाहुआ देविक स्वप्न प्रातसमय गुरुसे
Aho ! Shrutgyanam