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________________ काकरुते दिक्चक्रमकरणम् सूर्योदयः । ( २६७ ) विरूक्षसूक्ष्मास्य तनुर्विशंको यः कन्धरां दीर्घतरां विभर्ति || स्थिराननः स्थैर्यसमेतबुद्धिः काकत्यजातिः स तु पंचमोऽ ॥ ५ ॥ द्रोणाभिधः कृष्णवपुर्द्विजो यो ग्राह्यः स काकः खलु मुख्यवृत्त्या ॥ तस्मादृते श्यामगलो निरीक्ष्यः श्वेतस्तु निद्योद्भुतदर्शनोऽसौ ॥ ६ ॥ विप्रः स्फुटं जल्पति पृछयमानो न्यूनं ततः क्षत्रियजातिराह ॥ आख्याति वैश्यस्त्वधिवासनेन वीति शूद्रो बलिदानलोभात् ॥ ७ ॥ ॥ टीका ॥ नाभ्यंत इति रटितैः शब्दितैः अत्यंत रूक्षो यः स वैश्यः तथा यः भस्मच्छविः भूरिककारशब्दः सः शूद्रः कृशांगश्चपलः अतिरूक्षः ॥४॥ विरूक्षेति ॥ विरूक्षं सूक्ष्ममास्पं तनुश्च यस्य स तथा विशंक इति शंकारहितः यः कंधरां दीर्घतरां विभक्ति स्थिरानन इति स्थिरमाननं मुखं यस्य स तथा स्थैर्यसमेतबुद्धिरिति स्थैर्यसमेता बुद्धिर्यस्य स तथा स त्वत्र पंचमः काकोंत्यजातिर्भवति ।। ५ ।। द्रोणाभिध इति ॥ मुख्यवृत्त्या स काकः ग्राह्यः यो द्विजः द्रोणाभिधः कृष्णवपुः तस्मादृते तदभावे श्यामगलो निरीक्ष्यः श्वेतस्तु निद्यः यतोऽसौ अद्भुतदर्शनः यदा जंगति किश्चिदद्भुतं भवति तदा श्वेताको दृग्गोचरी भवति ॥ ६ ॥ विप्र इति ॥ विप्रः पृछ्यमानः स्फुटं जल्पति क्षत्रियजातिः ततः न्यूनमाह वैश्यस्तु अधिवासनेन ॥ भाषा || और जो भस्मको सो वर्ण जाको बहुत ककार शब्द बोलतो होय कृश जाको अंगा होप चपल और अतिरूखो होय वो काक शूद्र जाननो || ४ || विरूक्षेति ॥ विशेषकर रूखो और सूक्ष्म है मुखशरीर जाको और शंका रहितहोय और जो लबीकंधरा धारणकरे स्थिर जाको मुख वा स्थिर जाको शब्द होय और स्थिर समेत जाकी बुद्धि होय वो काक पांचमो अंत्यज जाति जाननो ॥ ५ ॥ द्रोणाभिध इति ॥ जो पक्षी द्रोणनामकर श्याम वपु जाको होय बो मुख्य वृत्तीकरके काकग्रहण करनो. और ताको अभाव होय तो श्याम जाको कंठ होय सो देखनो योग्य है. श्वेत तो निंदित है. जब श्वेत काक नेत्रन देखेहै तब वाकूं अद्भुत बतावे है. याते वो शकुनमें निंदित है ॥ ६ ॥ विप्र इति ॥ विप्रसंज्ञक काकसूं पूछे तो सर्व योग्य कहै और क्षत्रियजाति काक वाते न्यून कहे है. और वैश्य तो पूजन करेसूं यथार्थ कहे हैं. और शूद्रकाक बलिदान के लोभसूं कहैहै ॥ ७ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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