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(२५०) वसंतराजशाकुने-अष्टमो वर्गः।
॥ इति कपेक्षुश्रीकौँ ॥ दक्षिणेन शुभदः पथि फेंचो वासितेन खलु तस्य विशेषः। दक्षिणोदहियकस्त्वनुकूलःशेषदिक्षु कथितः प्रतिकूलः॥५२॥
॥ इति फेंचदहियकौ ॥ अवामभागे पथिकस्य शस्तौ चालोकशब्दौ किल कुकुटस्य। भीतोपिशब्दंकुकुकूइतीममसौ विमुंचन भवत्यभीष्टः॥५३॥
॥ टीका ॥ दक्षिणतश्च शस्तः स्यात् तथा श्रीकर्णस्य शब्दः पथि दक्षिणेन क्षेमाय स्यात् वामः . शब्दः अर्थविनाशाय स्यात् अत्र श्रीकर्णः वनचटक इत्यन्ये ॥५१॥
॥ इति कपेक्षुश्रीकर्णौ ॥ ॥ दक्षिणेति ॥ फेंच: बुलबुल इति लोके प्रसिद्धः पथि दक्षिणेन शुभदः स्यात् वासितेन तस्य शुभस्य विशेषः स्यात् दहियकः दहियट इति लोके प्रसिद्धः दक्षिणेन अनुकूलः स्यात् शेषदिक्षु प्रतिकूलः कथितः॥५२ ॥
॥ इति फेंचदहियकौ ॥ ॥ अवामेति ॥ पथिकस्य अवामभागे कुकुटस्य आलोकशब्दौ शस्तौ असौ.भी.
॥ भाषा॥ शुभ करै. और दक्षिण होय तो अशुभ करे. और तैसेही श्रीकर्ण जो वनचटक ताको शब्द मार्गमें दक्षिण होय तो कल्याण करै, और वाम शब्द होय तो अर्थको विनाश करै ॥ ११ ॥
॥ इति कपेक्षुश्रीकर्णी ॥ ॥ दक्षिणेति ॥ फेंचको नाम बुलबुल ये प्रसिद्ध है. फेंचमार्गमें दक्षिणमाऊं होय तो शुभदेवे, और वाममें होय तो विशेष शुभकू करै, और दहियकपक्षी याकू दाहियटभी कहैं है सो ये दक्षिणदिशामें होय तो अनुकूल होय. और बाकीकी दिशानमें होय तो प्रतिकूल होय. ॥ ५२॥
इति फेंचदहियकौ ॥ ॥ अवामेति ॥ मार्गीकू कक्कुडाको देखनो और शब्द ये दक्षिणभागमें शुभ हैं. और ये
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