SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४६) वसंतराजशाकुने-अष्टमो वर्गः। रात्रौ गृहस्योपरि भाषमाणो दुःखाय घूकः सुतमृत्यवे च ॥ गृहस्य नाशाय च सप्तरात्रानाशाय राज्ञो द्विगुणानुबंधी ॥ ॥४०॥ त्र्यहं गृहद्वारि रुदनलूको हरंति चौरा द्रविणान्यवश्यम् ॥ तस्मिन्प्रदेशे निशि मांसयुक्तस्तदोषनाशाय बलिः प्रदेयः ॥४१॥ पृष्ठे पुरो वा पथिकस्य शब्दं कुवन्सदा सूचयति प्रणाशम् ॥ विशेषतो वायसवैरिशब्दो दुष्टः प्रदिष्टोऽहनि सर्वदिक्षु ॥४२॥ ॥ इत्युलूकः॥ ॥ टीका॥ रात्राविति ॥ गृहस्योपरि रात्रौ भाषमाणः घूकः दुःखाय सुतमृत्यवे च भवति सप्तरात्रं गृहस्य नाशाय भवति । द्विगुणानुबंधी चतुर्दशदिनानि यावद्गहोपरि जल्पन राज्ञो नाशाय स्यात् ॥ ४०॥ व्यहमिति ॥ व्यहं दिनत्रयं गृहद्वारि धूके रुदन् स्यात्तदा चौरा द्रविणान्यवश्यं हरति । निशि तस्मिन्प्रदेशे तदोषनाशाय मांसयुक्तः बलिः प्रदेयः ॥४१॥ पृष्ठे इति । पथिकस्य पृष्ठेऽथवा पुरः शब्दं कुर्वन्नु लूकः सदा प्रणाशं सूचयति तथा विशेषतः वायसवैरिशब्दः सर्वदिक्षु अहनि दुष्टः प्रदिष्टः ॥ ४२ ॥ ॥ इत्युलूकंः ॥ ॥ भाषा॥ ॥रात्राविति ॥ वरके ऊपर रत्रिमें बोले तो दुःखके अर्थ है, और सुतके मृत्युके अर्थ है, और जो सातरात्रिपर्यंत घरके ऊपर बोले तो घरके नाशके अर्थ जाननो. और जो चौथी रात्रि ताई बोले तो राजाके नाशके अर्थ है ॥ ४० ॥ ॥ व्यहमिति ॥ तीन. दिनताई घरके द्वारपै घुघू शब्द करै तो चौर अवश्य द्रव्य हरण करें, याते जहां बैठके बोले वाई स्थानमें वाके दोष दूर होयबेके लिये मांस सहित बलिदान देनो योग्य है ॥ ४१ ॥ ॥ पृष्ठेइति ॥ मार्गमें गमनकर्ताके अगाडी वा पिछाडी शब्द करत घूधू नाशकू सूचना करे. और विशेषकरके दिनमें तो चारों दिशानमें दुष्टफलकू देवै है ॥ ४२ ॥ ॥ इत्युलूकः ॥ Ayo Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy