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पोदकीस्ते हंसादिकप्रकरणम् ।
॥ इति सारसः॥ कार्यक्षतिमिगते च ढेके मृत्युः पुरो दक्षिणपृष्ठगे च ॥ रुवन्वियत्स्थः समरे पुरोगो यदीयतंत्रस्य जयेत्स शत्रून्॥१२
॥इति ढेकः॥
॥ टीका ॥ सारसाभ्यां युगपद्विरावः कृतःस अचिरेण स्तोककालेन क्रमतोऽपियः शब्दः कथितोऽर्थकारीवेदितव्यः क्रौंचद्यस्यापिअयमेव मार्गःपंथाज्ञेयःयथासारसद्वंद्वस्य शकु नानि तथा क्रौंचव्यस्येति तात्पर्यार्थः यदि सारसः पथि युद्धं प्रकुर्वाणो दृश्यते तदा तत्र कलहमाख्याति यदुद्दिश्य प्रयाति तदभावेऽपिच एकोऽपि यदि दृश्यते तदा वियोगं कुर्यात कार्यहानिश्च स्यात् अभीष्टसमागमाभावश्च ग्रंथांतरेप्येवम् ॥ ११ ॥
॥ इतिः सारसः ॥ कार्य इति ॥ वामगते ठेके कार्यक्षतिर्भवति पुरोदक्षिणपृष्ठगे च मृत्युर्भवति यदीयतं-, त्रस्य समरे वियत्स्थः पुरोगो रुवन् भवति स शत्रन् जयेत् ॥ १२॥
॥ इति ढेकः॥
॥ भाषा॥ सारसको युगल दोनो एकसंगही शब्द करें तो शीग्रही क्रमसू अर्थकारी जाननो और क्रौंचद्वयको भी यही मार्ग है, जैसे सारसके जोडाके शकुन हैं तैसेही कौंचके जोडाको जाननो. जो सारसमार्गमें युद्ध करतो दीखे तो कलह कहै और जाको उद्देशकरके जातो होय ताको अभाव जाननो और जो एकही दीखै तो वाकोभी वियोग करें और कार्यकी हानि करै अभीष्ट समागमको अभाव करै ये ग्रंथांतरको मतहै ॥ ११ ॥
॥ इति सारसः॥ ॥ कार्य इति ॥ ढेंक पक्षी जो वामगति होय तो कार्यक्षति करै और अगाडी जेमने भाऊं पिछाडी गमन करे तो मृत्युकू देवे. और संग्राममें आकाशमें स्थित होय अगाडी आय शब्द करै तो शत्रुनकू जीतले ॥ १२॥
॥ इति ढेकः ॥
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