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(१०८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। ईदृशं विषुवतोभवेद्दयादेक्षिणायनदिने तु शांकरी ॥ पावकी ज्वलति चोत्तरायणे भस्मधूमसहिते तु पार्श्वयोः॥३७॥
॥ टीका ॥
ईदृशमिति ॥ रात्र्यंतयामार्धादारभ्य यावत्प्रभाते घटिकाचतुष्टयं तावदग्धा दिगैशी ज्वलिता दिगन्द्री संधुक्षिता अनलदिग्भवति ततः द्वितीयमहरे पूर्वदिग्दग्धा अमिकूणिर्दीप्ता दक्षिणदिग्धूमिता तृतीयप्रहरे अमिंदिग्दग्धा दक्षिणदिग्दीप्ता नैर्ऋति धूमिता अन्याः पंच शांताःततश्चतुर्थप्रहरे दक्षिणदिग्दग्धा नैऋतिकूणिर्दीप्ता पश्चिमदिग्धूमिता अन्योः पंच शांताः पंचमप्रहरे नैऋतिर्दग्धा पश्चिमदिग्दीप्ता वायव्य कूणिचूंमिता अन्याः पंच शांताः षष्ठे यामे पश्चिमदिग्दग्धा वायव्यकूणिर्दीप्ता उत्तर दिग्धूमिता अन्याःपंच शांताः सप्तमे प्रहरे वायव्यकूणिर्दग्धा उत्तरदिग्दीताईशानकूणि मिता अन्याःपंचशांताः अष्टमेप्रहरे उत्तरदिग्दग्धा ईशानकूणिर्दीप्ता पूर्व दिग्धूमिता अन्याः पंच शांताः पुनः प्रभाते पूर्वोक्तमेव ईदृशं दग्धादिस्वरूपं विषुवतोईयोमषतुलयोर्भवेत्। “समरात्रिंदिवे काले विषुवद्विषुवंचतत्" इत्युक्तेस्तत्रैव तत्सं,
॥ भाषा ॥
ज्वलिता, और अग्निदिशा संधुक्षिता ॥ ३६ ॥ ईदृशमिति ॥ रात्रिके अंतयामको अर्द्ध प्रहरते लेकर जबतक प्रभातकी चार घडी तब ताई ईशानदिशा दग्धा, और इंद्रकी पूर्वदिशा ज्वलिता, और अग्निदिशा संधुक्षिता होय है ता पीछे दूसरे प्रहरमें पूर्वदिशादग्धा
और अग्निकोण दप्तिा दक्षिणदिशा धूमिता, और तृतीय प्रहरमें अग्नि कोण दग्धा, दक्षिणदिशा दीप्ता, नैरृति दिशा धूमिता और जे पांचों दिशाते शांता हैं, और ता पीछे चतुर्थ प्रहरमें दक्षिणदिशा दग्धा, नैति दिशा दीप्ता पश्चिम दिशा धूमिता, और पांचो दिशा शांता, और पंचम प्रहरमें नैति दिशा दग्धा, पश्चिम दिशा दीप्ता दग्धा, वायव्य कोण धूमिता, और पांचों दिशा शांता छठे प्रहरमें पश्चिम दिशादग्धा, वायव्यदिशा दीप्ता, उत्तर दिशा धूमिता, और पांचों दिशा शांता हैं और सातवें प्रहरमें वायव्य कूणदग्धा, उत्तर दिशा दीप्ता, ईशानदिशा धूमिता, और पांचों दिशा शांता आठवें प्रहरमें उत्तर दिशा दग्धा, ईशानकूण दीप्ता, पूर्वदिशा धूमिता, और पांचों दिशा शांता, मेष तुलाके सूर्यहोय तब
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