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जिनके लेख नाहरजी के 'जैसलमेर जैन लेख संग्रह' व हमारे "बीकानेर जैन लेख संग्रह" आदि में छप चुके हैं । कई अप्रकाशित भी हैं।
उपाश्रय
बीकानेर में आपने एक उपाश्रय व ज्ञान भंडार स्थापित किया जो अभी सुगनजी के उपासरे के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें आपके नाम से क्षमाकल्याण ज्ञान-भंडार भी है।
श्रीसिद्धचक्राय नमः श्रीपुंडरीकादिगौतमगणधरेभ्यो नमः "श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर- भट्टारक--श्री जिनभक्ति सूरिशिष्य प्रीतसागर गणिशिष्य वाचनाचार्य संविग्न श्रीमदमृतधर्मगरिण शिष्योपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणगणिनामुपदेशात् श्री संघेन पुण्यार्थे, श्री बीकानेर नगरे इयं पौषधशाला कारिता संवत् १८५८ । इस पोषधशाला माहे शुद्ध समाचारी धारक संवेगी साधु साध्वी श्रावक श्राविका धर्म ध्यान करे और कोई उजर करण पावै नहीं सही १२॥ लिखितं उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः संवत् १८६१ मिती मार्गशीर्ष सुदि ३ दिने संघ-समक्षम् ।।
उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणगणि स्वनिश्रा को पुस्तक भंडार स्थापन कोयौ उसकी विगति लिखे है
___ "ए ग्यान भंडार को पुस्तक कोई चोर लेवे अथवा बेचै सो देवगुरु धर्म को विराधक होय भवोभव महादुःखी होय ।"
क्षमाकल्याणजी के प्रशिष्य महिमाभक्ति जी का पुस्तक संग्रह काफी अच्छा था, जो बड़े उपाश्रय के बृहद् ज्ञान भंडार में सुरक्षित है।
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