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जयपुर के बोहरा धर्मसी के पुत्र कपूरचन्द ने अपने परिवार एवं स्वर्मियों के संघ साथ प्रयाग कर किशनगढ़ वाले विशाल संध के साथ प्रा मिले, मार्ग में श्री चिनामणि पाश्वनाथ एवं फलवर्डी पार्श्वनाथजी की यात्रा को एवं १७ भेदो पूजा की।
मरुधर प्रान्त के फलद्धि नगर निवासी राज सभा शृंगार गिड़ोया राजाराम एवं संघवो तिलोकचन्द लुणीया ने संघ निकाला। कुकमपत्री भेज संघ को आमन्त्रित किया, पाली में प्रथम रथ जात्रा की वहां मिरजापुर, जयपुर, किशनगढ़, बीकानेर, मेहता, सोझत, नागोर, जैसलमेर, जोधपुर, पालो जालोर, पालणपूर, भिनमाल के संघ सम्मिलित हए । मार्ग में जिनदर्शन, चैत्योद्धार, देव द्रव्य वृद्धि, धर्म प्रभावना करते हुए पाटण पाये। वहां के संघ मुख्य आपके संघ सन्मुग्व पाये और संघ ने वहां चैत्यवंदन, देव-द्रव्य-वृद्धि का। वहां से शंखेश्वर पार्श्वनाथजी को (फागुण सुदि १५) यात्रा की। पाटण, राधनपुर, अहमदाबाद, का संघ भा साथ हो गया। और गिरनार पर जाकर सम्वत् १८६६ के चैत्र शुक्ला १५ को सर्व संघ ने यात्रा की। इस संघ में खरतर भट्रारक श्रो जिनहर्ष सूरिजी, खरतराचार्य श्री जिनचंद सूरिजो, (उपकेश) कंवले श्री पूज सिद्धिसूरि और १ सम्भवतः पाली के खरतर श्री पूज्य कुल ४ प्राचार्य एवं उ० क्षमाकल्याण जो मुनि साथ थे। हाथी, घोड़े, रथ, पैदल अनेक साथ थे और संघ को रक्षा के लिए सैनिकों का पूरा प्रबन्ध था।
मार्ग के जिन मन्दिरों के दर्शन और धर्म प्रभावना करता हुप्रा संघ शत्रुञ्जय के समीप आया। गिरिराज को दूर से दर्शन होने मात्र पर माणिक मोतियों से बधाया, तलहटी पाने पर खूब महोत्सव हुआ और वैशाख शुक्ला २ को संघ ने श्री शत्रुञ्जय तीर्थधिराज को यात्रा कर अपने को कृत कृत्य माना।
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