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स्याज्जंघयोरधोभागे, पादोपरिकृतेसति । पाणिद्वयं नाभ्यासन्न मुत्तानं दक्षिणोत्तरम् ।। -दक्षिण एवं वाम जंघाओं के नीचे का भाग पाँव के ऊपर रखकर दक्षिण एवं वाम हाथ नाभि के समीप खुले रखने पर पर्यङ्कासन होता है।
यही पर्यङ्कासन शाश्वत प्रतिमानों का एवं निर्वाण काल में भगवान महावीर का था। प्रश्न ५०:-चौबीसों तीर्थ कर कौनसा अनशन स्वीकार करके
कौन से आसन से स्थित हो मोक्ष को प्राप्त हुए हैं ? उत्तर:-सभी तीर्थ कर पादोपगमन अनशन से सिद्ध हुए हैं एवं
भविष्य में भी होंगे। प्रवचन सारोद्धार वृत्ति में तथा पंचाशक विवरण में कहा है किसव्वे सव्वद्धाए, सव्वन्नू सव्वकम्मभूमी सु। सव्वगरु सव्वमहिया, सबमेरुमि अभिसित्ता ॥१॥ सवाहि वि लद्धीहि, सव्वेवि परीसहे पराइत्ता। सव्वे वि य तित्थयरा पाअोवगयाउ सिद्धिगया ॥२॥ अवसेसा अणगारा तीयपडुप्पन्नणा गया सव्वे । कोई पाअोवगया पच्चक्खाणं गिणिं केई ॥३॥ सव्वाश्रो अज्जायो सव्वे विय पढम संघयण वज्जा । सव्वे य देसविरया पच्चक्खाणेण उभरती ॥४॥
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