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( ६२ ) अभव्यों के लिये यह बात घटित नहीं होती। इस युक्ति का समर्थन वृद्ध जन भी करते हैं । प्रश्न ४८-प्रथम एवं अन्तिम तीर्थ कर के छद्मस्थ काल में
सम्पूर्ण प्रमाद काल कितना था ? उत्तर :-श्री ऋषभदेव भगवान का छद्मस्थ काल एक हजार
वर्ष का है। इस छद्मस्थकाल में उग्र तपस्या करते हुए सम्पूर्ण प्रमाद काल एक अहोरात्रि का है। इसी प्रकार श्री महावीर प्रभु के साढ़े बारह वर्ष पर्यन्त तपस्या करते रहने पर उनका प्रमादकाल एक अन्तर्मुहुर्त का ही है। इस सम्बन्ध में उत्तराध्ययन सूत्र कमल संयमी टीका के बत्तीसवें अध्ययन में
तथा अन्य शास्त्रों में भी कहा है किवीरुसहाण पमानो अंतमुहुत्त तहेव होरत्त ।
उवसग्गा पासस्स य वीरस्स य न उण सेसाणं ।।
ऋषभदेव स्वामी का प्रमाद काल एक अहोरात्रि का • और वीर प्रभु का प्रमादकाल अन्तर्मुहुर्त का है। पार्श्वनाथ एवं वीर प्रभु को उपसर्ग हुए हैं। दूसरे किसी भी तीर्थंकर को उपसर्ग नहीं हुए। प्रश्न ४६:-शाश्वत जिन प्रतिमाए कौन से प्रासन से बैठी
उत्तर :-शाश्वत जिन प्रतिमाएँ पर्यङ्क प्रासन से बैठी हुई हैं।
योग शास्त्र वृत्ति के चतुर्थ प्रकाश में कहा है कि
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