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( ५६ ) योजन ऊँचा होता है। यह सारा अधिकार जम्बू
द्वीप-प्रज्ञप्ति-सूत्र की टीका में है। प्रश्न ४५-इन्द्रों के जो पालकादि विमान कर्ता देव हैं वे अपने
आत्मप्रदेशों से अधिष्ठित विमानों की रचना करते हैं या प्रदेश रहित अचित्त पुद्गलों से रचना
करते हैं ? उत्तर :--पालकादि देव ही स्वयं विमान रूप हो जाते हैं अत:
ये विमान अचित्त नहीं हो सकते । इस सम्बन्ध में स्थानाङ्ग वृत्ति के दशमस्थानक में इस प्रकार कहा है:
यथा-"पालक इत्यादीनि शक्रादीनां क्रमेणाऽवगन्तव्यानि
इत्यादि, आभियोगिकाश्चैते देवा विमानी भवन्तीति अतएव विमान नामान्यपि पालकादीन्येव बोध्यानि ॥" "पालक आदि देव अनुक्रम से इन्द्रादि के विमान जानना चाहिये। ये पाभियोगिक देव ही विमान रूप होते हैं, अतः विमानों के नाम भी पालकादि जानना।" प्रश्न ४६-जैसे लोकपालादि के विमान भिन्न-भिन्न होते हैं वैसे __ ही इन्द्रों के सामानिक देवों के भी महाऋद्धि वाले
होने से भिन्न-भिन्न विमान होते होंगे क्या ? उत्तर :-इन्द्रों के सामानिक देवों के विमान भिन्न नहीं होते
क्योंकि ऊपर के सहस्रारादि देवलोक में सामानिक
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