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( ५७ ) घोसा घंटालहुपरक्कमो पायत्ताणि आहिवई दाहिणिल्लेणिज्जाणभग्गो उत्तर पुरिच्छि मिल्लेरइकरगपव्वए इत्यादि, असुराएणं ओघस्सरा घंटा णागाणं मेघस्सरा सुवरणाणं हंसस्सरा विज्जूणं कोंचस्सरा, अग्गीणं मंजुस्सरा, दिसाणं मंजुघोसा उदहीणं सुस्सरा दीवाणं महुरस्सरा, वाऊणं णंदिस्सरा, थणि प्राणं नंदिघोसा इत्यादि वाणमंतराणं दाहिणाणं मंजुस्सराः उत्तराणं मंजुघोसा इत्यादि ।"
-सौधर्म, सनत्कुमार, ब्रह्मलोक महाशुक्र एवं प्राणत इन देवलोक के इन्द्रों की सुघोषा नाम की घंटा है और हरिणैगमेषी सेनापति हैं। उत्तर दिशा के इन्द्रों के निकलने का मार्ग अग्निकोण स्थित रतिकर पर्वत है। ईशान, माहेन्द्र, लान्तक, सहस्रार एवं अच्युत इन देवलोक के इन्द्रों की महाघोषा नाम की घण्टा और लघु पराक्रम नामक सेनापति है। दक्षिण दिशा के इन्द्रों के निकलने का मार्ग ईशान कोण में स्थित रतिकर पर्वत है। इसी प्रकार असुरों की अोघस्वरा, नागों की मेघस्वरा, विद्युत्कुमार की क्रौंञ्चस्वरा, अग्निकुमार की मन्जुस्वरा, दिककुमार की मंजुघोषा, उदधिकुमार की सुस्वरा, वायुकुमार की नन्दिस्वरा, स्तनित कुमार की नन्दिघोषा, दक्षिण दिशा के वानव्यन्तरों की मंजुस्वरा एवं उत्तर दिशा के वानव्यन्तरों की मंजुघोषा नाम की घंटा है। कहीं कहीं ऐसा भी उल्लेख है कि चार प्रकार के देवों के चार प्रकार के पृथक पृथक् वादित्र होते हैं। इसका प्रतिपादन करने वाली यह अदृष्टमूल गाथा है, जिसके मूल का अन्वेषण करना चाहिये।
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