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( ५३ ) परिवार वाले घंटाकार असंख्य चन्द्र सूर्य स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त लाख योजन की अन्तर वाली पंक्तियों से रहते हैं।
इस प्रकार इस सम्बन्ध में परिशिष्ट पर्व के राजगृहवर्णन में भी कहा है कि
तत्र राजत सौवर्णैः प्रकारः कपिशीर्षकैः । भाति चन्द्रांशुमद् बिम्बैमर्योत्तर इवाचलः ॥ ऐसे इस प्रकरण में कई मत मतान्तर हैं; उनमें तत्त्व क्या है, यह तो केवली ही जाने । प्रश्न ४२-जब भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में दिन होता है, तब
महाविदेह में रात होती है और जब भरतादि में रात होती है, तब विदेह में दिन होता है। यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध है। किन्तु श्री भगवती सूत्र में ऐसा कहा है कि जिस दिन भरतादि में वर्षा ऋतु प्रारम्भ होती है उसी दिन विदेह में भी एक समय बाद वर्षा ऋतु होती है। इस से जब भरतादि क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट १८ मुहूर्त का दिन होता है, तब महाविदेह में अठारह मुहूर्त रात होती है तो ऋतुभेद से आगम
के साथ विरोध क्यों नहीं होता है ? उत्तर :-ऐसा कहना अनुचित है क्योंकि कर्क संक्रान्ति के प्रथम
दिन पूर्व महाविदेह क्षेत्र में तीन मुहूर्त दिन शेष रहने पर भरत क्षेत्र के मनुष्य उदय होते हुए सूर्य को देखते हैं और भरत क्षेत्र में भी तीन मुहूर्त दिन शेष रहने पर पश्चिम महाविदेह के मनुष्य भी
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