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________________ जैन-पुरातत्व ८७ शाखाओंके पारगामी विद्वान् व अनेक ग्रन्थ रचयिता प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि', कुशल कवि श्रीदेवचन्द्रसूरि और पृथ्वीराज चौहानकी राज-सभाके विद्वत् मुकुटमणि श्रीजिनपतिसूरि, सुप्रसिद्ध दार्शनिक अमरचन्द्रसूरि', श्रीजिनप्रबोधसूरि, संगीत-विशारद श्रीजिनकुशलसूरि, मुहम्मद तुगलक प्रतिबोधक व जैन स्तुति स्तोत्र साहित्यमें क्रान्तिकारी परिवर्तन करनेवाले श्रीजिनप्रभसूरि, अकबर प्रतिबोधकर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीहरिविजयसूरि तथा श्रीविजयदेवसूरि आदि अनेक जैनाचार्योंकी स्वतंत्र मूर्तियाँ प्राप्त हो चुकी हैं। प्राचीन शिल्प विषयक आचार्य हेमचन्द्रसूरिकी मूर्ति प्रायः सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है, शत्रुजय तीर्थपर इनकी छत्री बड़ी प्रसिद्ध है। ये चापोत्कट वंशीय वनराजके गुरु शीलगुणसूरिके पट्ट शिष्य थे । पंचासरा पार्श्वनाथ (पाटन, उत्तर गुजरात ) के मन्दिरमें इनकी मूर्ति विद्यमान है। - इनका स्वर्गवास विक्रम संवत् १२७७ आषाढ़ सुदी १०के दिन पालनपुर (गुजरात ) में हुआ था। तदनन्तर १२८० वैशाखसुदी १४ के दिन पालनपुरमें इनकी मूर्ति जिनहितोपाध्याय द्वारा स्थापित हई थी। दाह-संस्कार स्थानपर श्रीसंघ द्वारा स्तूपका निर्माण हुआ था। इनकी प्रतिमा पाटनमें टाँगडिया वाड़ाके जैन-मन्दिरमें विद्यमान है, जिसपर इस प्रकार लेख खुदा है___ संवत् १३४६ चैत्र बदी ६ शनौ श्री वायटीय गच्छे श्री जिनदत्तसूरि शिष्य पंडित श्री अमरचन्द्रसूरिः पं० महेन्द्र शिष्य मदन चन्द्राख्याख्येन कारता शिवमस्तु । पाटनमें इनकी प्रतिमा विद्यमान हैं। इनकी प्रतिमा शत्रुजय तीर्थपर चौमुखजीकी टोंकमें प्रतिष्ठित है। *इनकी प्रतिमाएँ राजस्थानमें प्रायः सर्वत्र प्राप्त होती हैं। इनकी मूर्ति गौडीपार्श्वनाथ मंदिर बम्बईमें तीसरे मंजलेपर सुरक्षित है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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