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अक्षुण्ण बनाये रखा । ऐसे विद्वानोंमें स्व० डॉ० हीरालालजीका स्थान प्रथम पंक्ति में आता है ।
डॉ० हीरालाल
आपने सर्वप्रथम हिन्दीमें गज़ेटियर तैयार किये और प्रान्तीय विद्वानोंको इस पुनीत कार्यके लिए प्रोत्साहित किया । इनके व इनकी परम्पराका अनुधावन करनेवाले विद्वत्समाजने जो गजेटियर तैयार किये उनमें पुरातत्त्व सामग्रीका अच्छा संकलन है । मुझे भी अपने अन्वेषणोंमें उनसे भारी मदद मिली है । स्पष्ट कहा जाय तो थोड़ा बहुत भी मध्यप्रान्तका गौरव श्राज विद्वत्समाजमें है, वह डॉ० साहब की शोध के कारण ही । पर खेदकी बात है कि वह डॉ० साहब जैसे विद्वान्को पाकर भी प्रान्तीयविद्वान् उनकी शोधविषयक - परम्परा कायम न रख सका उनके लिखे गजेटियरके परिवर्द्धित संस्करणोंका प्रकाशन नितान्त आवश्यक है । डॉ० सा० राष्ट्रकूट व कलचुरियों के माने हुए विद्वान् थे ।
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पं० लोचनप्रसादजी पाण्डेय - श्रापने मध्यप्रान्त के इतिहास व पुरातत्त्व की महान सेवा की है । जंगलों में घूम-घूमकर लेखोंका संग्रह करना, उनका संपादन कर उचित स्थान पर प्रकाशित करवाना, यही श्रापके जीवनकी साधना रही है राज भी जारी है । महाकोसलके शिला व ताम्रलेखों को आपने योग्यतापूर्वक सम्पादनकर " महाकोसल रत्नमाला” के भागों में प्रकट किया है । आपकी "महाकोसल हिस्टोरिकल रिसर्च सोसायटी” (विलासपुर ) श्राज भी शोधकार्यमें तन्मय है ।
स्व० योगेन्द्रनाथ सील -- ये सिवनीके सुप्रसिद्ध वकील व नागरिक थे । treat प्रान्त " मध्य प्रदेशका इतिहास" के लेखकके नाते ही जानता है । पर आपने जैन-पुरातत्त्व और इतिहासकी जो मूक सेवा की है, बहुत कम लोगोंको ज्ञात है । आपने मध्यप्रान्तके ऐतिहासिक स्थानोंको २५ वर्ष पूर्व देखा था, सभीके नोट्स भी आपने लिये थे । इनकी दैनन्दिनी
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