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________________ महाकोसलकी कतिपय हिन्दू - मूर्तियाँ ४०३ बायें हाथमें कलश ग्रहण किये हुए हैं । उचित आभूषणोंके साथ तूर्णालंकार आवश्यक माना गया है । मूर्तिकला एवं भावोंकी दृष्टिसे इन ग्रहोंकी मूर्तियाँ अध्ययनकी नई दिशाका सूत्रपात करती हैं। सूर्य - सूर्यकी प्रतिमा इस भू-खण्डपर प्रचुर परिमाण में उपलब्ध होती हैं । कुछ मूर्तियाँ १२ फुटसे अधिक ऊँची पाई गई हैं । इनकी तुलना गढ़वाकी विशाल सूर्य प्रतिमासे की जा सकती है । ये मूर्तियाँ प्रायः सपरिकर ही हैं । इनकी कलाको देखनेसे ज्ञात होता है कि आठवीं शताब्दी पूर्व भी इस ओर निश्चित रूपसे सूर्यपूजाका प्रचार रहा होगा, जिसके फलस्वरूप विशाल मन्दिरोंका भी निर्माण होता रहा होगा। मंदिर की परम्परा १२ वीं शतीतक प्रचलित थी । यद्यपि महाकोसल में अद्यावधि स्वतंत्र सूर्य मंदिर उपलब्ध नहीं हुआ, परन्तु १२ वीं शताब्दीका एक चौखटका उपरिम खंड प्राप्त हुआ है, जिसमें सूर्य की मूर्ति ही प्रधान है । स्वतंत्र भी छोटी-बड़ी दर्जनों में सूर्य- मूर्तियाँ पाई गई हैं। इनपर आभूषणों का इतना बाहुल्य है, कि मूर्तिका स्वतंत्र व्यक्तित्व दब जाता है । 1 नारीमूर्तियाँ — महाकोसलके कलाकार सापेक्षतः नारीमूर्ति सृजनमें अधिक सफल हुए हैं। नारीमूर्तियों की संख्या भी बहुत बड़ी है । सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, गंगा, कल्याणदेवी, स्तंभपरिचारिकाएँ, नृत्य प्रधान मुद्राएँ आदि प्रमुख हैं । इन प्रतिमाओ के निर्माण में कलाकारने जिस सजगता से काम लिया है, वह देखते ही बनता है । जहाँतक स्त्रीमूर्तियों के निर्माणका प्रश्न है, उनमें महाकोसलकी अपनी अमिट छाप परिलक्षित होती है । तात्पर्य कि कुछ विशेषताएँ ऐसी हैं, जिनसे दूर से ही मूर्तिको पहचाना जा सकता है । सबसे बड़ी विशेषता है नारियोंके मुखमण्डलकी रेखाएँ । कलाकारोंने देवीमूर्तियों में भी दो भेदोंसे काम लिया है। प्रथम पंक्ति में मूर्तियाँ आ सकती हैं, जिनका निर्माण भावना प्रधान है अर्थात् प्राचीन संभ्रांत परिवारोचित भाव लाने की चेष्टा की है। ऐसी मूर्तियाँ इस ओर कम पाई जाती हैं। दूसरी कोटिकी वे मूर्तियाँ हैं, जिनके निर्माण के लिए Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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