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प्रतिमा १९४२० इंच
२. १॥ संवत् १२६८ वर्षे वैसाष शुदि १० रवौ आचार्य स्री स्रुत (श्रीश्रत) कीर्ति गुरुपदेशेन साह पाल्ह भार्या श्रामिलि ललिया सुत साधु थीरू भार्या वल्हा बल्हासुत महिपति धणपति प्रणमन्ति नित्यं ॥ .
प्रतिमा २२४१६ इंच
३. संवत् १२६४ वर्षे वैसाष सुदि १० रवौ गृहपति साधु आसद खेता"उसील पितापुत्र प्रणमन्ति नित्यं ॥ .
४. "नेवान्वये साधु वरणसामि तद्भार्या रत्ना सुत लावू प्रणमन्ति सं० १२२५ ॥
मूर्तियाँ स्निग्ध हैं । मुखदर्शन तो होता ही है साथ ही मौर्यकालीन चमकका आभास भी मिलता है।
जैन-प्रभाव
महाकोसलमें जैनसंस्कृतिके व्यापक प्रभावके कारण हिन्दू और बौद्ध-धर्मकी मूर्तियोंपर जैनकलाका प्रभाव पड़ा है। बरहटामें खडगासनमें द्विभुजी विष्णुकी एक मूर्ति उपलब्ध हुई है, जो ढीमर चौतरेपर पड़ी है । इसका सिर जैन-मूर्त्तिके समान मुकुटविहीन है। केश भी वैसे ही गोल गुच्छोंकेसमान है । जब विष्णुकी मूर्ति मुकुटसहित और चतुर्भुजी होती है.। ध्यानी विष्णुमें भी जैन-मूर्तिका ही प्रभाव है।
नोनियामें, शंकरमर्तिपर भी जैन प्रभाव' है। शिवमूर्तिमें जटाका
'सुप्रसिद्ध गवेषक बाबू कामताप्रसादजी जैन के ता० ३०.४-५३ के . पत्रसे विदित हुआ कि इन्दौरके संग्रहालयमें आपने एक ऐसी शिवमूर्ति देखी थी जो बिल्कुल जैन मूर्ति ही लगती थी। उनका मानना है कि भग. वान् ऋषभदेवको शिवरूपमें अंकित किया गया है। संभव है दृष्टि सम्पन्न कलाकार शोधमें तन्मय हो जाय तो ऐसी और भी रचना मिल जॉय ।
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