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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३६५ -गली-गलीमें फैले हुए हैं । कुछेकमें घर तक बस गये है । कई मन्दिरोंके प्रस्तरोंसे गृहोंका निर्माण तक हो गया हो रहा है, संभव है भविष्यमें भी यह परम्परा जारी रहे । इन मन्दिरोंकी संख्यासे तो ऐसा लगता है कि मुग़ल काल में भी बिलहरी उन्नतिके शिखरपर थी। मूर्तियाँ __ इसे मूर्तियोंकी नगरी कहा जाय तो लेशमात्र भी अत्युक्ति न होगी, क्योंकि सैकड़ों संख्यामें यहाँपर प्राचीन प्रतिमाएँ पाई जाती हैं। बिलहरी, कलचुरिशैलीकी मूर्तिकलाका चलता-फिरता संग्रहालय है। मैं लगातार पाँच दिनोंतक सभी गलियों में कई बार खूब घूमा, पर कोई स्थान ऐसा न मिला, जहाँपर एक या अधिक मूर्तियोंका संग्रह पड़ा हो। बहुत कम घर ऐसे मिले जिनकी दोवाल या आँगनमें मूर्तियाँ न लगी हों। यहाँतक कि कुछ सुनारोंकी सीढ़ियोंतकमें मूर्तियाँ लगी हुई हैं। सरोवरके किनारे खैरदैयाके मन्दिर के पास तो एक दर्जनसे अधिक अखंडित मूर्तियाँ उलटी गड़ी हैं । चबूतरोंमें, वृक्षोंके निम्न भागमें दर्जनों मूर्तियाँ पड़ी हैं । इनकी सुधि नवरात्रमें ही ली जाती है। इन मूर्तियोंमें जैन, बौद्ध, शैव और वैष्णव-सभी सम्प्रदाय परिलक्षित होते हैं। कुछ-एक कलाकी साक्षात् प्रतिमा ही हैं। नगर में बहुत स्थानोंपर जो हाते बनाये गये हैं-उनमें भी स्थापत्यके अच्छे-अच्छे प्रतीक लगे हुए हैं। यहाँ के लोग कहते हैं कि बिलहरीका कोई पत्थर ऐसा नहीं, जो खुदा न हो। इस कथनमें भले ही अतिशयोक्ति हो, पर असत्यांश तो अवश्य ही नहीं है। गणेशजीकी अतीव सुन्दर कई मूर्तियाँ बाजारकी खैरमाईके स्थानपर हैं। मेरा तो पाँच दिनका ही अनुभव है, पर यदि स्वतन्त्र रूपसे यहाँपर अध्ययन एवं खुदाई करवाई जाय तो, और भी महत्त्वकी कलात्मक सामग्री मिल सकती है। आश्चर्य तो मुझे पुरातत्त्व विभागके उन उच्च वेतनभोगी कर्मचारियोंपर होता है जो जनतासे महावेतन Aho ! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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