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________________ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व ३४७ न करें, यह असम्भव है । बालसागरके तटपर कुछ मूर्ति-विहीन शैवमन्दिर आज भी विद्यमान हैं। यहाँ के कचरेमेंसे गजलक्ष्मीकी एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। त्रिपुरीके समीप ही कर्णवेलके अवशेष हैं। अभी वहाँ अच्छा जंगल पैदा हो गया है। केवल स्तम्भ मात्र रह गये हैं, एक स्तंम्भका चित्र दिया जा रहा है । कलचुरियोंकी यह सामान्य कृति भी, उनकी परिष्कृत रुचिकी परिचायक है । कर्णवेलमें दुर्गको दीवालोंके चिह्न दो मीलतक स्पष्ट दिखलाई पड़ते हैं। स्थान-स्थानपर गड्ढे भी मिलेंगे। इनमें से गढ़े-गढ़ाये पत्थर निकालकर मालगुज़ारने बेचकर सांस्कृतिक अपराध किया, तब हम पराधीन थे। परन्तु स्वाधीन होते हुए भी इस ओर जो उदासीनता बढ़ती जा रही है, वह खलती है। हिन्दू संस्कृतिकी गौरवगरिमाको व्यक्त करनेवाली प्रचुर देव-देवियोंकी प्रतिमाओंको यहाँ के समान शायद ही कहीं सामूहिक उपेक्षा हो रही होगी। यहाँकी कृतियोंमें आभूषणोंका बाहुल्य है। मुझे भी सौ-लगभग उपेक्षित मूर्तियाँ व शिल्पावशेष यहाँकी जनता द्वारा, प्राप्त हुए थे, जिनकी चर्चा अन्यत्र की गई है। और वे सब जबलपुरके शहीद स्मारकमें रखे जावेंगे। गढ़ा जबलपुरसे पश्चिम ४ मीलपर पड़ता है, पर अब तो वह इसका एक भाग ही समझा जाने लगा है। यह गोंड राजाओंका पाटनगर था; जैसा कि मदनमहलसे (जो यहाँ से एक मील दूर पहाड़ीपर बना है) ज्ञात होता है। राजा संग्रामशाह इसमें रहते थे। महलके पास ही शारदाका मन्दिर है। संग्रामशाहकी मुद्राओंसे ज्ञात होता है कि उस समय वहाँ टकसाल भी रही होगी। गढ़ामें जलाशयोंकी संख्या काफी है। पुरातन अवशेष भी प्रचुर परिमाणमें उपलब्ध होते हैं, जो जलाशयके किनारे पर, रखे हुए हैं। यहाँ पर एक दरजीके घर की दीवालमें ध्यानी-विष्णुको सुन्दर प्रतिमा लगी हुई है। थानाके सम्मुख ही एक तान्त्रिक मन्दिर बना है। Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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